बुधवार, 22 अक्तूबर 2014

दूध पर किसका हक?

ग्लैडसन डुंगडुंग -
मंगल का गांव टोंगरीटोली, सिमडेगा जिले स्थित बीहाड़ जंगल में स्थित है। गांव के लोगों की आजीविका खेती, जंगल और पशुपालन पर ही निर्भर है। लेकिन गांव में रहने वाले बहुसंख्यक आदिवासी समुदाय के लोग मवेशियों; गाय, भैंस व बकरीद्ध का दूध पीना पसंद नहीं करते और पीते भी नहीं। यहां तक कि दूध से बनाया गया छेना, रसगुल्ला, पेड़ा इत्यादि को भी वे खाना नहीं चाहते। बचपन में मंगल को भी मवेशियों का दूध और उसे बना छेना, रसगुल्ला, मिठाई वगैरह पसंद नहीं थे। लेकिन वह पढ़ाई के लिए शहर क्या गया अब तो वह भी समाज की मुख्यधारा में समा गया। अब तो उसे छेना, रसगुल्ला, पेड़ा सबकुछ अच्छा लगने लगा है।

शहर में रहने वाले आदिवासी लोग अब स्वयं को मुख्यधारा का हिस्सा बनाने में लगे हुए हैं इसलिए उन्हें इन सब चीजों से परहेज क्या? वे तो मवेशियों का दूध मजे से पीते हैं और दूध से बनी मिठाइयों भी बहुत चाव से खाते हैं। लेकिन मंगरा के लिए यह अच्छी बात थी कि वह छुट्टियों में सीधा गांव आ धमकता था। शायद उसके लिए इसके अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचा था! वरना क्या शहर में नौकरी पाने के बाद पैसा कमाकर बिल्डिंग, गाड़ी और बैंक बैलेंस बनाने वाले आदिवासियों जैसा वह भी छुट्टी मनाने शिमला, नैनीताल और कुल्लू-मनाली नहीं जाता?

इस बार की गर्मी छुट्टी में मंगल के लिए अपने घर में कुछ खास था। आज लालकी गाय ने एक बछड़े को जो जन्म दिया था। यह जानकर मंगल के मुंह से लार टपक रहा था कि अब उसे छुट्टी में भरपूर दूध पीने को मिलेगा क्योंकि उसके घर क्या गांव में तो कोई भी दूध पीता ही नहीं था। आदिवासी लोग कैसे बोका लोग हैं दूध नहीं पीते? मंगल बड़बडाया। मंगल शहर में दूध पीना सीख गया था तो स्वंय को बहुत बड़ा होशियार समझ रहा था। उसे फीलगुड हो रहा था की अब वह समाज के मुख्यधारा का हिस्सा हो गया है लेकिन उसे यह बात भी कौंध रही थी कि समाज की मुख्यधारा का हिस्स होने के लिए उसे और कौन-कौन सी चीजें करना बाकी है या मुख्यधारा का हिस्स बनते-बनते उसकी सारी उम्र तो नहीं निकल जायेगी? गांव के लोगों को कितना सदी लगेगा मुख्यधारा में जुड़ने के लिए? गांव आते ही मानो मंगल के मन में सवालों का युद्ध छिड़ गया था।

इसी बीच एक सप्ताह बीत चुके थे लेकिन मंगल को दूध नसीब नहीं हुआ। अब वह यह सोचकर मायूस हो चुका था कि घर में गाय होने के बावजूद उसे दूध नसीब क्यों नहीं हो रहा है? उसने अपने आबा से पूछा, ‘‘आबा हम लोग दूध क्यों नहीं पी रहे है?’’ आसाढ़ का महीना पहुंचने ही वाला था इसलिए आबा खेती की तैयारी मेें जोर-शोर से लगा हुआ था। आज भी वह खेत जाने की ही तैयारी कर रहा था। उसने मंगल को जवाब देते हुए कहा, ‘‘मंगल मैं जल्दबाजी में हूँ. इसलिए तुम्हारे सवाल का जवाब शांम को दूंगा और नहीं तो काका के पास चले जाओ वे तुम्हारे सवाल का अच्छी तरह से जवाब देकर तुम्हें समझा भी देंगे।,’’ यह कहते हुए मंगल के आबा टांगी, कोड़ी और गेडु़आभार लेकर खेत की ओर निकल पड़े। काका टोंगरीटोली के आस-पास के गांवों में काफी मशहूर थे। उनके पास सभी लोगों के सवालों का जवाब था और वे सभी को संतोषजनक जवाब देकर ही वापस भेजते थे। इसलिए उनके पास लोगों की भीड़ लगी रहती थी। वे बच्चों को भी कहानी सुनाया करते थे।

अब मंगल को कुछ सवाल बार-बार परेशान कर रहे थे। टोंगरी टोली के आदिवासियों के पास काफी संख्या में मवेशी थे - गाय, भैंस और बकरी। वह स्वयं से ही प्रश्न कर रहा था कि गांव के आदिवासी लोग गाय, भैंस और बकरी का दूध क्यों नहीं पीते हैं? क्या वे सचमुच बोका है? उन्हें दूध पीना अच्छा क्यों नहीं लगता है? लेकिन मंगल को भी पता था कि इन प्रश्नों का जवाब उसे काका ही दे सकते थे इसलिए दोपहर का कलेवा खाने के बाद वह सीधा काका के पास जा पहुंचा। काफी धूप होने के कारण काका अपने घर के आंगन में लगे कटहल पेड़ के नीचे खटिया में बैठकर कुछ बच्चों को कहानी सुना रहे थे।

मंगल जब काका के पास पहुंचा तो खामोश था। लेकिन मुलाकात की रस्म पूरी करते हुए उसने कहा, ‘‘जोहार काका!’’ ‘‘जोहार मंगल,’’ काका ने भी जवाब दिया। मंगल को खामोश देखकर काका थोड़ा आश्चर्य हुए। उन्होंने मंगल से पूछा, ‘‘मंगल आज तुम इतने खामोश क्यों हो? कब शहर से कब लौटा? कुछ हुआ है क्या?’’ ‘‘नहीं काका बस मुझे कुछ सवाल परेशान कर रहे हैं इसलिए उनका जवाब पूछने आपके पास आया हूँ. मैं पिछला सप्ताह ही घर वापस आया हूँ.’’ अच्छा यह बात है तो परेशान क्यों हो? आओ यहां बैठो और पूछो,’’ काका ने उत्सुकता से मंगल के सवालों का जवाब देने हेतु इशारा किया।

मंगल ने अब न तब देखकर काका के उपर तुुरंत सवालों की झड़ी लगा दी। ‘‘काका हम लोग मवेशियों का दूध क्यों नहीं पीते हैं? क्या हमलोग सचमुच बोका हैं? हमें मवेशियों का दूध अच्छा क्यों नहीं लगता है? हमलोग दूध से बनाया हुआ छेना, रसगुल्ला, पेड़ा वगैरह क्यों पसंद नहीं करते हैं?’’ क्या हम इसीलिए समाज की मुख्यधारा में नहीं हैं? इतने सवालों को एक साथ सुनते ही काका हंस पड़े... अच्छा तो ये सवाल तुम्हें परेशान कर रहे थे,’’ काका ने हंसते हुए पूछा। हां काका,’’ मंगल ने थोड़ी राहत की सांस लेते हुए जवाब दिया। ‘‘मैं तुम्हारे सभी सवालों का जवाब दूंगा मंगल लेकिन तुम सबसे पहले आराम से सास ले लो,’’ काका ने मंगल से कहा।

अब काका ने सब बच्चों को आदिवासी जीवन-दर्शन के बारे में बताने का मन बना लिया था। मंगल के सवालों ने उन्हें इस बात का एहसास दिला दिया था कि आदिवासी जीवन-दर्शन का प्रचार-प्रसार नहीं हो रहा है इसलिए बच्चे इस तरह के सवालों से उलझ गये हैं और शहरों में रहने वाले बच्चें चकाचैंध की दुनियां में खोते जा रहे हैं। अब काका ने सभी बच्चों को कटहल पेड़ के नीचे बैठाकर मंगल के सवालों का जवाब देते हुए बच्चों से सवाल पूछा, ‘‘क्या तुम लोग यह जानते हो कि आदिवासी लोग मवेशियों का दूध क्यों नहीं पीते है?’’ ‘‘नहीं काका आप हमें बताईये ना,’’ बिरसा ने झट से जवाब दिया। अब तो दूसरे बच्चे भी मंगल के सवालों का जवाब जानने के लिए उत्साहित थे।

समय गवांये बगैर मंगल के सवालों का जवाब देते हुए काका ने कहा, ’’देखों बच्चों अगर गाय, भैंस और बकरी का दूध हम लोग पी जायेंगे तो उनके बच्चों को क्या मिलेगा?’’ वे इतना ही पर नहीं रूके। उन्होंने आगे कहा, ‘‘मवेशियों के बच्चों को मां का दूध नहीं मिलेगा तो उनका शारीरिक विकास रूक जायेगा और वे कमजोर हो जायेंगे। यह प्रकृति का नियम है कि माॅं के दूध पर पहला हक बच्चे का होता है।’’ काका ने जोर देकर कहा, ‘‘जरा सोचो जब तुमलोग छोटे थे और तब तुम्हारा पूरा जीवन ही अपनी मां के दूध पर टिका हुआ था उस समय अगर तुम्हारा हक कोई और छीन लेता तो तुम्हारा क्या होता? क्या तुम लोग इतना बुलंद हो सकते थे? क्या तुमलोग कमजोर, लाचार और बीमार नहीं हो जाते? काका के सवालों ने बच्चों को सख्ते में डाल दिया था? ‘‘ऐसा अद्भुत विचार किसने हमारे समाज को दिया है काका,’’ मंगरा ने जिज्ञासा भरा सवाल पूछा।

आगे काका ने बच्चों को समझाते हुए कहा, ‘‘गाय के दूध पर बछड़े का पहला हक’’ एक अदभुत विचार है जो हमारे आदिवासी जीवन-दर्शन का हिस्सा है और आज भी जीवित है। हमारे पूर्वजों ने हमें इस तरह से जीना सिखाया है कि हमलोग सिर्फ इंसानों के हक और अधिकारों की बात नहीं करते हैं अपितु जानवरों के हक और अधिकारों का सम्मान, उसकी रक्षा और उसे सुनिश्चित भी करते हैं। आदिवासी जीवन-दर्शन में आहार श्रृंखला को छोड़कर इंसान और जानवरों के हक को बराबरी का दर्जा दिया गया है। हमारे समाज में इंसान तो क्या पशुओं के साथ भी भेदभाव नहीं किया जाता है।’’ काका के अद्भुत विचार ने बच्चों की जिज्ञासा को जमीन से आसमान तक पहुंचा दिया था।

काका ने आगे कहा, ‘‘जानते हो बच्चो इंसान के साथ जानवरों के सम्मान अधिकार की जमीनी हकीकत को देखना और समझना है तो तुम्हें अपने आबा, काका और दादा के साथ शिकार पर जाना होगा। क्या तुमलोग यह जानते हो कि आदिवासी जीवन-दर्शन में शिकार करने का भी नियम बना हुआ है? जब हमलोग शिकार पर जाते हैं तो सबसे पहले अपने पूर्वजों को याद करते हैं और जंगली जानवरों का शिकार करते समय गर्भावती जानवर, बच्चे या असहाय जानवरों का शिकार नहीं करते हैं। और शिकार से वापस आने के बाद हमलोग मिलजुल कर शिकार तैयार करते हैं। इसके बाद शिकार को गांव में सभी परिवारों के बीच बराबर में बांटते हैं। इतना हीं नहीं शिकार पर गये कुत्ते और बच्चों को भी शिकार में बराबरी का हिस्सा दिया जाता है। और अगर किसी परिवार से शिकार पर कोई नहीं जा सका है फिर भी उस परिवार को हिस्सा दिया जाता है। ऐसा अद्भुत समाज दुनियां में कहां है?’’ ‘‘आप सही कहते हैं काका,’’ मंगल ने पूरे विश्वास के साथ जवाब देते हुए कहा।

काका ने बच्चों को दूसरे समाज की हकीकत बताते हुए कहा, ‘‘आदिवासी समाज को अशिक्षित, अनपढ़, पिछड़ा के रूप में दिखाया जाता है जबकि हक और अधिकारों का सम्मान करना, अधिकारों की सुरक्षा एवं उन्हें लागू करने में हमारा आदिवासी समाज सबसे आगे हैं। वहीं दूसरी ओर स्वयं को शिक्षित, विकसित एवं सभ्य कहने वाले लोग इंसानों के हक और अधिकारों का भी सम्मान नहीं करते हैं और हर समय एक-दूसरे के हकों को छीनने पर तुले रहते हैं। मंगल ने काका से सवाल पूछते हुए कहा, ‘‘काका हमें बताईये ना कि क्या ये लोग हमारे हक को भी छीनते हैं?’’ ‘‘हां मंगल क्या तुमलोगों ने नहीं सुना है कि कैसे ये लोग हमारी जमीन, जंगल, नदी, पहाड़ और खनिज को छीन रहे हैं? सरकार ने हमारे लिये कानून बनाया है, जिसमें कहा गया है कि हमारी जमीन को गैर-आदिवासी लोग नहीं खरीद सकते हैं लेकिन ये लोग गैर-कानूनी तरीके से हमारी जमीन लूट रहे हैं। शहरों में आदिवासियों की जमीन पर उनके बड़े-बड़े बिल्डिंग खड़े है, शाॅपिंग माॅल बन रहे हैं और एक के बाद अर्पामेंट बनाया जा रहा है।,’’ काका ने मंगरा के सवाल का जवाब देते हुए बताने की कोशिश की।

काका ने कहा, ‘‘ये लोग स्वयं को समाज का मुख्यधारा बताते हैं लेकिन मुनाफा कमाने के लिए जानवरों का भी शोषण करते हैं।’’ इस पर मंगल ने तुरंत काका से सवाल किया, ’’काका दूसरे समाज के लोग कैसे जानवरों का शोषण करते हैं?’’ काका ने मंगल के सवाल का जवाब देते हुए कहा, ‘‘जानते हो मंगल अगर तुम जानवरों का शोषण देखना चाहते हो तो किसी के व्यक्तिगत खटाल पर चले जाओ, जहां गाय के बछड़ा और भैंस के पाड़ा के मुंह को न सिर्फ जालीनुमा थैला से बांधा जाता है बल्कि गाय और भैंस का दूध दूहने से पहले प्रतिदिन सूई दिया जाता है, जिसे वे जल्द से जल्द और ज्यादा दूध दे। और जब खटाल का मालिक गाय या भैंस का दूध दुह लेता है उसके बाद बछड़ा या पाड़ा को दूध पीने का नसीब होता है।’’ ‘‘दूसरे समाज के लोग इंसान के हक को तो लूट ही रहे हैं जानवरों के हक को भी मार रहे हैं,’’ काका ने समझाते हुए कहा।

काका ने आगे बच्चों को बताते हुए कहा, ‘‘बच्चों जानते हो दूसरे समाज के लोग गाय को ‘‘गो माता’’ की उपमा देते हैं और उसकी सुरक्षा के लिए बड़ी-बड़ी बातें करते हैं लेकिन वही लोग आपने लालची पेट को भरने के लिए ‘‘गाय’’ को सूई देकर ज्यादा दूध निकालने की कोशिश करते हैं और जब गाय बूढ़ी हो जाती है तो उसे कसाईयों के हाथो में बेच देते हैं। यह गाय का खून चूसने जैसा ही है ना। ऐसे लोग इंसानों के हक और अधिकारों के बारे में कैसे सोच सकते हैं?’’ और जानते हो मंगल हमारे देश में गिद्ध और कौवे की मौत इतनी तदाद में क्यों हो रही है? गिद्ध और कौवे इसलिए मर रहे हैं क्योंकि जब एक गाय मर जाती है तो उसके मृत शरीर को किसी नहर के आस-पास फेंक दिया जाता है और जब गिद्ध और कौवे उसे खाते हैं तो गाय का मांस उनके लिए जहर बन जाता है क्योंकि ज्यादा दूध लेने के लिए गायों को जो सूई दी जाती है उसमें जहर होता है। यह सुनते ही बच्चों की आंखें नम हो गई। काका ने आज बच्चों की आंख खोल दी थी क्योंकि अब वे ही तो आदिवासी समाज को आगे ले जाने वाले थे। काका की बातों को सुनने के बाद मंगरा में मन में चल रहा सवालों का युद्ध समाप्त हो चुका था। शांम के लगभग लगभग चार बज रहे थे इसलिए काका और बच्चों से विदा लेकर मंगरा खुशी-खुशी अपना घर वापस चला गया।  

3 टिप्‍पणियां:

  1. क्या यह ललकी और चरकी की आगे की कहानी का विस्तार है जहाँ दो बाकी की व्याख्या इन आदिवासियों के जरिए बखान किया जा रहा है ! मैं लगभग इन्हीं पर कॉमिक्स बना रहा हूं ! अगर आपकी इजाजत और सहयोग हुआ तो मैं चाहूंगा कि आप ऐसे ही आदिवासी-समाज के मुद्दे पर और कहानियाँ लेकर आए !!

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  2. जोहार ! ग्लैडसन दादा ! काफी वक्त हो गया आपके रिप्लाई देने में ! क्या अभी भी और आर्टिकल या स्टोरी लिखने में व्यस्त हैं !

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