गुरुवार, 19 अक्तूबर 2017

इस मौत का जिम्मेवार कौन?

ग्लैडसन डुंगडुंग

28 सितंबर 2017 को झारखंड के सिमडेगा जिलान्तर्गत जलडेगा प्रखंड के कारीमाटी गांव की 11 वर्षीय बच्ची संतोषी कुमारी की मौत हो गई। उसने ‘भात-भात-भात’ कहते हुए दम तोड़ दिया। संतोषी की मां कोयली देवी को इस बात के लिए अब भी बहुत अफसोस है कि वह अपनी बेटी के लिए खाना उपलब्ध नहीं करा सकी। ‘‘भात दे यो ... भात दे यो... कहीके चिलाय-चिलाय के मोर बेटी कांदलक लेकिन मोय उके भात देक नी पारलों। चाइर-पांच दिन ले पूरा परिवार खाबे नी कईर रिही। स्कूल में खाना मिलत रहे लेकिन दशहरा कर छुट्टी देई रहांय।’’ (मेरी बेटी चिल्ला-चिल्ला कर रोते हुए खाना मांगी लेकिन मैं खाना नहीं दे पायी। पूरा परिवार चार-पांच दिनों से खाना नहीं खाया था। स्कूल में खाना मिलता था लेकिन दशहरा के चलते स्कूल बंद था।) ये शब्द एक विवश मां के हैं जो किसी को भी अंदर से झकझोर सकते हैं। लेकिन यहां के नेता और नौकरशाहों को इसे कोई फर्क नहीं पड़ता है। उन्होंने इस मामले की जांच कर विवश परिवार को ही इसके लिए जिम्मेवार ठहराया है। लेकिन यहां मौलिक सवाल यह है कि क्या इस मौत का जिम्मेवार राज्य का नौकरशाह और तानाशाही शासन व्यवस्था नहीं हं?  
इस गरीब परिवार के पास रहने के लिए घर भी नहीं है। वे एक झोपड़ी में रहते हैं। कोईली दतून पŸ बेचकर सप्ताहभर में लगभग 80 रूपये कमाती है यानी उसके महीने की कमाई लगभग 320 रूपये है। कोईली का पŸ मानसिक रूप से बीमार है इसलिए काम नहीं कर पाता लेकिन गांव में दूसरों का बैल चराता है जिसके एवज में वे लोग परिवार को कुछ अनाज देते हैं। कोईली अपनी कमाई से राशन दुकान से एक रूपये किले चावल खरीदकर अपना परिवार चलाती थी। लेकिन कुछ महीने पहले झारखंड के मुख्य सचिव राजबाला वर्मा ने जिले के उपायुक्तों को आदेश दिया था कि जिनके पास आधार कार्ड हैं उन्हें ही राशन दिया जाये। इसी आदेश के आधार पर डीलर ने फरवरी महीने से कोईली के परिवार को राशन देना बंद कर दिया था क्योंकि उनके पास आधार कार्ड नहीं था। इस तरह से इस परिवार के लिए भूखों मरने की नौबत आ गई। संतोषी ने मौत से 24 घंटे पहले भयंकर पेट दर्द की शिकायत की थी। इसका अर्थ यह है कि समय पर खाना नहीं मिलने के कारण वह बीमार हो गई थी। इससे यह बात बहुत स्पष्ट है कि संतोषी के मौत का जिम्मेवार झारखंड का नौकरशाही है। 

सुप्रीम कोर्ट ने भोजन के अधिकार से संबंधित अपने फैसले में साफ कहा है कि भूख से होने वाले मौत के लिए राज्य के मुख्य सचिव, संबंधित जिले के उपायुक्त एवं प्रखंड विकास पदाधिकारी जिम्मेवार होंगे तथा उनके उपर अपराधिक मामले दर्ज किये जाने चाहिए। खाद्य अपूर्ति मंत्री सरयू राय की भी माने तो झारखंड के मुख्य सचिव राजबाला वर्मा ने राशन कार्ड से आधार कार्ड को जोड़ने का आदेश जारी किया था इसलिए उक्त परिवार को राशन नहीं मिला। यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ है। इसलिए इस मौत का जिम्मेवार मुख्य सचिव ही हैं। यहां सबसे हास्यास्पद बात यह है कि झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इस मामले की जांच सिमडेगा जिले के उपायुक्त मंजूनाथ भजंत्रि से करवाया, जिन्होंने अपने रिपोर्ट में इस मौत को भूख के बजाय मलेरिया से हुई मौत करार दिया है। यहां मौलिक प्रश्न यह है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने भूख से मौत का जिम्मेवार राज्य के मुख्यसचिव, उपायुक्त एवं प्रखंड विकास पदाधिकारी को माना है तो ये पदाधिकारी भूख से हुए मौत की जांच कैसे कर सकते हैं? क्या कोई अपराधी स्वंय किये गये अपराध के मामले की जांच कर सकता है? क्या इसमें आपसी हित का टकराव नहीं होगा? क्या ऐसे मामलों की जांच एक निर्विवादित जांच एजेंसी से नहीं करानी चाहिए?   

झारखंड में भूख से मौत का इतिहास यह है कि राज्य गठन से लेकर अबतक यहां लगभग 100 से ज्यादा लोगों की भूख से मौत हुई है। पलामू जिले के लेस्लीगांज तथा चतरा जिले के हिन्दकिलिया से लेकर सिमडेगा जिले के कारीमाटी तक, भूख से हुई मौत को सरकार ने अपने रिपोर्ट में बीमारी से मौत लिख कर स्वयं को इन मौतों के लिए संवैधानिक जिम्मेवारी से मुक्त कर लिया है। सत्य यही है कि लोकतांत्रिक सरकारें न सिर्फ गरीबों को भूखों मरने पर विवश करती हैं बल्कि अपना अपराध छुपाने के लिए उन्हें ही झूठा साबित करती हैं। कोईली कह रही है की उसकी बेटी भूख से मर गई लेकिन सरकार कह रही है कि वह मलेरिया से मरी। क्या यह कोईली के घाव में नमक रगड़ना नहीं है? हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि झारखंड सरकार ने पिछले दिनों राज्य में 11.5 लाख राशन कार्ड को रद्द करने एवं 70 लाख गायों के आधार कार्ड बनाने को अपनी बड़ी उपलब्धि के रूप में गिनाया था। क्या सरकार कोईली देवी जैसे गरीबों से मांफी मांगेगी, जिनका सरकार ने आधार कार्ड नहीं बनाया तथा राशन कार्ड रद्द कर दिया है और वे भूखों करने पर विवश हैं? क्या झारखंड ऐसे बदल रहा है? क्या नया झारखंड ऐसे बन रहा है? क्या राज्य में ऐसे विकास हो रहा है?  

हमारे देश के सŸधीश लोग देश के 125 करोड़ लोगों को बुलेट ट्रेन, स्मार्ट सिटी, डिजिटल इंडिया, और नया भारत का सपना जितना भी दिखाये लेकिन कोईली के परिवार की हालत इस हकीकत को फिर से देश के सामने ला कर खड़ा कर दिया है कि देश में आज भी करोड़ों लोग ऐसे हैं जिनके लिए सामाजिक सुरक्षा यानी रोटी, कपड़ा और मकान हासिल करना सिर्फ एक सपना बनकर रह गया है। हमें यह मालूम होना चाहिए कि चूंकि देश और राज्य की सरकारें हमारीेमौलिक समस्याओं का समाधन नहीं कर सकती हैं इसलिए हमें धर्म, गौहत्या, धर्मांतरण जैसे गैर-जरूरी मुद्दों पर उलझाकर अपना राजनीतिक रोटी सेेंकने का काम करती हैं। इसमें वे इसलिए सफल हैं क्योंकि बहुसंख्य लोग जागरूक नहीं है, वे हकीकत को नहीं जानते हैं तथा इसका विश्लेषण भी नहीं करते हैं। संतोषी जैसे लाखों बेवश लोगों को बचाने के लिए हमें जागरूक होना होगा, हकीकत को जानना होगा तथा इसके लिए जिम्मेवारी तय करना होगा क्योंकि देश में भूख से हो रही मौतों का जिम्मेवार कोई तो जरूर है।     

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें