गुरुवार, 23 नवंबर 2017

किसका विकास?

ग्लैडसन डुंगडुंग


झारखंड में चारों तरफ विकास का शोरगुल है। झारखंड सरकार विज्ञापनों के माध्यम से आम जनता को बता रही है कि राज्य में विकास हो रहा है, झारखंड बदल रहा है, नया झारखंड बन रहा है, इत्यादि। विकास तो जरूर हो रहा है लेकिन यहां के आदिवासी और मूलवासियों का नहीं बल्कि बाहर से यहां व्यापार करने आये औद्योगिक घरानों, व्यापारियों एवं ठेकेदारों का क्योंकि सरकार की नीति ऐसी ही बनायी गई है, जिसमें स्थानीय लोगों को फायदा नहीं पहुंचेगा। विकास के इस शोरगुल में पूंजीपति लोग कैसे मलाई मार रहे हैं इसको समझने के लिए झारखंड की उर्जा नीति 2012 एवं सरकार की गतिविधियों को गंभीरता से समझना होगा। इस उर्जा नीति के तहत बिजली उत्पादन करने वाली कंपनी अपने कुल उत्पादन का मात्र 25 प्रतिशत हिस्सा ही राज्य को देगा और 75 प्रतिशत हिस्से को बाहर बेचेगा। झारखंड में बिजली उत्पादन होगा लेकिन झारखंडियों को नहीं मिलेगा। यह कैसा विकास है? किसका विकास है? और किसके कीमत पर ऐसा विकास किया जा रहा है?   

झारखंड में 32,620 गांव हैं। लेकिन दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण ज्योति योजना के तहत 29,492 गांवों को ही मानव निवास माना गया है। सरकार की रिपोर्ट को माने तो इन गांवों में से 29,223 गांवों में बिजली पहुंच चुकी है तथा शेष 269 गांवों में दिसंबर 2017 तक बिजली पहुंचा दिया जायेगा। ऐसा दिखाई पड़ता है कि गांवों में बिजली पहुंच गई है यानी गांवों का विकास हो रहा है। लेकिन दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण ज्योति योजना का रिपोर्ट चैकाने वाला तथ्य पेश करता है। बिजली गांवों में जरूर पहुंच रही है लेकिन सभी घरों में नहीं। इस रपोर्ट में बताया गया है कि झारखंड के गांवों में कुल 54.89 लाख परिवार रहते हैं। इनमें से अबतक मात्र 24.60 लाख परिवारों के लिए ही बिजली उपलब्ध हो पायी है। राज्य में अभी भी 30.29 लाख परिवारों तक बिजली पहुंचाना बाकी है जो बड़ी चुनौती है। यदि इसे प्रतिशत में देखें तो झारखंड के 55.2 प्रतिशत परिवारों के पास अबतक बिजली नहीं पहुंची है। 

झारखंड में सभी लोगों को बिजली मिल सकती है। लेकिन ऐसा इसलिए संभव नहीं हो पा रहा है क्योंकि सरकार अपने बिजली उपक्रमों का सही रख-रखाव एवं इस्तेमाल करने के बजाये पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने में लगी हुई है। राज्य में लगभग 5700 मेगावट बिजली की जरूरत है जबकि उत्पादन सिर्फ 3002 मेगावट ही हो पा रहा है। इस तरह से राज्य में अभी 2600 मेगावट बिजली की कमी है। सरकार के बिजली उपक्रम पतरातू थर्मल पावर, तेनुघाट थर्मल पावर एवं सिकिदरी हाईडल पावर को मिलाकर मात्र 520 मेगावट ही उत्पादन हो रहा है जबकि उनकी क्षमता 3,650 मेगावट है। सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रही है। डीवीसी झारखंड को 1600 मेगावट बिजली देती है तथा शेष जरूरत को नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन एवं अन्य निजी कंपनियों से पूरा किया जाता है। राज्य में बिजली की काफी कमी होने के बावजूद नये बिजली परियोजनाओं से राज्य को मात्र 25 प्रतिशत ही बिजली मिल पायेगी क्योंकि राज्य सरकार ने बिजली कंपनियों के साथ ऐसा ही समझौता किया है।   

ऐसा इसलिए किया गया है ताकि बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियां अपने उत्पादन का 75 प्रतिशत बिजली दूसरे राज्यों या देश के बाहर बेचकर ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा सकेगी क्योंकि ये कारपोरेट घराना ही चुनाव के समय पानी की तरह पैसा बहाते हैं इसलिए सरकार बनने के बाद वे अपने हितों को साधने वाली नीति भी बनवाते हैं। हकीकत में ये पूंजीपति ही देश में सरकार चला रहे हैं। इसलिए केन्द्र एवं राज्य सरकारें जनहित, विकास एवं आर्थिक तरक्की का बड़ा-बड़ा नारा देकर आम जनता को बेवकूफ बनाते हुए कारपोरेट घरानों को फायदा पहुंचाते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है अडानी कंपनी का गोड्डा में प्रस्तावित पावर प्रोजेक्ट। 

अडानी पावर लिमिटेड का मालिक है गौतम अडानी जो गुजरात का बड़ा व्यापारी है। वे भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सबसे चहेता चेहरा में से एक हैं। भारतीय जनता पार्टी के साथ इनका क्या रिश्ता है यह सबको पता है। केन्द्र में भाजपा की सरकार बनने के साथ ही गौतम अडानी ने झारखंड में पावर प्रोजेक्ट लगाने का प्रस्ताव रखा। इससे पहले उन्होंने झारखंड में कोई भी परियोजना लगाने पर रूचि नहीं दिखाई थी। इस तरह से 17 फरवरी एवं 21 अक्टूबर 2016 को गौतम अडानी की कंपनी ‘अडानी पावर लिमिटेड’ ने झारखंड सरकार के साथ 15,000 करोड़ रूपये पूंजीनिवेश से संबंधित दो समझौतों पर हस्ताक्षर किया। इस समझौता के तहत गोड्डा में कुल 1600 मेगावट यानी 800-800 मेगावट का दो तापीय विद्युत सयंत्र स्थापित किया जायेगा। 

झारखंड सरकार ने अडानी कंपनी को परियोजना स्थापित करने के लिए गोड्डा जिले के गोड्डा एवं पोड़ैयाहाट प्रखंड में जमीन तथा सुन्दरपहाड़ी प्रखंड में स्थित जीतपुर काल ब्लाक आवंटित किया है। पावर प्रोजेक्ट स्थापित करने के लिए गोड्डा प्रखंड के मोतिया, पटवा एवं गंगटा तथा पोड़ैयाहाट प्रखंड के गायघाट, सोनडीहा एवं माली गांव के कुल 917.21 एकड़ रैयती जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है। इसी तरह जीतपुर काल ब्लाक के अन्तर्गत सुंन्दरपहाड़ी प्रखंड के तेलमीठा, डुमरपालम, डाहुबेड़ा, पकेड़ी एवं जीतपुर गांव के 338.78 एकड़ रैयती जमीन का अधिग्रहण करने का प्रस्ताव है। रैयती जमीन का अधिग्रहण करने से हजारों रैयत उजड़ जायेंगे इसलिए वे इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं। 

इस परियोजना को लेकर कई सवाल है। इस परियोजना के समझौता-पत्र में कहा गया है कि यह परियोजना जनहित एवं लोक कल्याणकारी है। यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह परियोजना कैसे जनहित एवं लोक कल्याणकारी है जबकि अडानी पावर लिमिटेड एक निजी कंपनी है, जिसका सरोकार सिर्फ मुनाफा कमाने से है। यदि यह परियोजना जनहित एवं लोक कल्याणकारी है तो 1600 मेगावट बिजली में से 1200 मेगावट बिजली बंगलादेश को बेचने का समझौता क्यों किया गया है? इससे किसको लाभ होगा? झारखंड में बिजली की भारी कमी होने के बावजूद इस परियोजना का 75 प्रतिशत बिजली बंगलादेश को क्यों बेचा जायेगा? यह कैसा जनहित एवं लोक कल्याणकारी कदम है? हकीकत यह है कि यदि अडानी कंपनी झारखंड में बिजली बेचती तो उसे कम मुनाफा होता। चूंकि कंपनी का मुख्य उद्देश्य है ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना इसलिए कंपनी 1200 मेगावट बिजली बंगलादेश को बेचकर उसे ज्यादा कीमत वसूलेगी। यह परियोजना जनहित एवं लोक कल्याणकारी बिल्कुल नहीं है बल्कि अडानी कंपनी के लिए मुनाफा केन्द्रित है। झारखंड सरकार लोगों को बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रही है। 

एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी है कि क्या इस परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण करने की प्रक्रिया में ‘भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुनव्र्यावस्थपन कानून 2013 का उल्लंघन किया गया है? इस कानून के अनुसार एक एक्सपर्ट ग्रुप को सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन करना, जिसमें ग्रामसभा के दो सदस्य का होना जरूरी है। लेकिन सरकार ने मुंबई की एक कंपनी ए.एफ.सी. इंडिया लिमिटेड से सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन कराया है, जिसने सिफाशि किया है कि इस परियोजना का सकारात्मक प्रभाव नकारात्मक से ज्यादा लाभकारी है। सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन प्रतिवेदन में कहा गया है कि 70.3 प्रतिशत कृषि भूमि है। आंदोलनकारी रैयत कहते हैं कि अडानी कंपनी के लिए 80 प्रतिशत कृषि भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है। ये जमीन सिंचित हैं। यहां नहर है तथा आस-पास छोटी-छोटी नदियां, तालाब एवं कुआं हैं। इसके अलावा यहां डीप बोरिंग से भी सिंचाई की जाती है। जमीन काफी उपजाउ है एवं बहुफसलीय है। भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुनव्र्यावस्थपन कानून 2013 के धारा - 10 के तहत बहुफसलीय कृषि भूमि का अधिग्रहण पर प्रतिबंध लगाया गया है। इसके बावजूद झारखंड सरकार इस जमीन को अडानी कंपनी के लिए अधिग्रहण कर रही है। इस परियोजना का जो रैयत विरोध कर रहे हैं उनके उपर पुलिसिया जुल्म किया जा रहा है, फर्जी मुकदमा दर्ज किया गया है तथा कुछ लोगों को जेल में डाला गया था। इस परियोजना को स्थापित करने के लिए कानून का घोर उल्लंघन किया गया है। 

झारखंड सरकार विकास को लेकर जितना भी शोरगुल कर ले लेकिन आज के विकास की यही हकीकत है। अडानी पावर लिमिटेड का पावर प्रोजेक्ट के लिए जमीन, पानी और कोयला झारखंड से लिया जायेगा। कोयला निकालने के लिए जंगल काटा जायेगा और बड़े पैमाने पर यहां पर्यावरणीय क्षति होगी। यहां के लोग विस्थापित होंगे। लेकिन बिजली बंगलादेश को दिया जायेगा। इस परियोजना का एकमात्र उद्देश्य है अडानी कंपनी को ज्यादा से ज्यादा मुनाफा पहंचाना क्योंकि कंपनी के मालिक गौतम अडानी भारतीय लोकतंत्र को खरीदने की ताकत रखते है। आज के विकास का अर्थ है पूजीपतियों को फायदा पहुंचाना, प्राकृतिक संसाधनों को औद्योगिक घरानों को सौपना और आदिवासी इलाके में उनका साम्राज्य स्थापित करना। अब लोगों को तय करना है कि वे इस विकास प्रक्रिया का हिस्सेदार बनना चाहते हैं या नहीं। 

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