रविवार, 25 जून 2017

क्या सरना समाज को ईसाई मिशनरियों से खतरा है?

ग्लैडसन डुंगडुंग

भाजपा के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के द्वारा 15 जून 2017 को गुमला में आयोजित सम्मेलन में झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा कि धर्मांतरण झारखंड की सबसे बड़ी समस्या है। सम्मेलन में भाजपा नेताओं ने एक शुर में कहा कि धर्मांतरण सरना समाज के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा है। मोर्चा के नेताओं ने सरकार से मांग की कि धर्मांतरण को रोकने के लिए राज्य में कानून बनाया जाय तथा धर्मांतरित ईसाईयों को आरक्षण के लाभ से वंचित किया जाय। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने उनसे वादा किया कि उनकी सरकार विधानसभा में धर्मांतरण बिल लायेगी। यहां कई प्रश्न उठते हैं कि क्या सचमुच सरना समाज को ईसाई मिशनरियों से खतरा है? झारखंड राज्य के गठन के बाद कितने सरना आदिवासियों का ईसाई धर्म में धर्मांतरण हुआ है?क्या झारखंड सरकार के पास इसका कोई पुख्ता आॅंकड़ा है? क्या सरकार धर्मांतरण के मसले पर स्वेत-पत्र जारी कर सकती है? भाजपा नेता फिर से धर्मांतरण को मुद्दा क्यों बना रहे है? क्या सीएनटी/एसपीटी कानूनों में किये गये संशोधन के मसले पर आदिवासियों के आक्रोश को देखते हुए भाजपा ने फिर से धर्मांतरण का मुद्दा उछाला है? धर्मांतरण का क्या अर्थ है? क्या किसी व्यक्ति का अपने धर्म को त्यागकर सिर्फ ईसाई धर्म को स्वीकार करना ही धर्मांतरण है या किसी भी धर्म को स्वीकार करना धर्मांतरण है? झारखंड में धर्मांतरण की सच्चाई क्या है?   

धर्मांतरण का मूल अर्थ है एक व्यक्ति का अपने धर्म को त्यागकर किसी दूसरे धर्म को स्वीकार करना। आदिवासी लोग मूलरूप से प्रकृति पूजक हैं,  जो झारखंड में अपनी आस्था को ‘सरना धर्म’ के रूप में स्थापित किये हैं। धर्मांतरण की परिभाषा के अनुसार ‘सरना धर्म’ को त्यागकर अन्य किसी भी धर्म को अपनाने वाले आदिवासी लोग धर्मांतरण के दायरे में आते हैं। इसलिए जिस तरह से एक आदिवासी का सरना धर्म को त्यागकर ईसाई धर्म को अपनाना धर्मांतरण है ठीक उसी तरह एक आदिवासी का सरना धर्म को छोड़कर हिन्दु धर्म को स्वीकार करना भी धर्मांतरण है। लेकिन भाजपा और संघ परिवार के लोग सिर्फ उन लोगों को धर्मांतरण की श्रेणी में रखते हैं, जो अपना धर्म त्यागकर ईसाई धर्म को अपनाते हैं तथा सरना धर्म को हिन्दु धर्म का हिस्सा बताकर बड़ी चलाकी से सरना धर्म के अस्तित्व को ही नाकारते हैं। इसके अलावा घरवापसी के आड़ में ईसाई आदिवासियों का भी हिन्दु धर्म में धर्मांतरण करते हैं। यद्यपि किसी भी धर्म को स्वीकार करना, उसे मानना या उसका प्रचार-प्रसार करना प्रत्येक व्यक्ति को धर्म की स्वातंत्रता का मौलिक अधिकार है जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 एवं 26 में प्रावधान किया गया है। इसके बावजूद भाजपा और संघ परिवार ईसाई मिशनरियों पर आदिवासियों के धर्मांतरण का लगातार आरोप लगाते रहते हैं। इसलिए हमें धर्मांतरण की हकीकत को भी आॅंकड़ों के तराजू से तौलना चाहिए।  

भारत सरकार के द्वारा जारी जनगणना रिपोर्ट, धर्मांतरण पर झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास, भाजपा एवं संघ परिवार के नेताओं के दावे और हो हल्ला के ठीक विपरीत है। जनगणना रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2001 में झारखंड में ईसाईयों की जनसंख्या 4.1 प्रतिशत थी जो 2011 में मामूली वृद्धि के साथ 4.3 प्रतिशत पर पहुंची यानी एक दशक में भी ईसाई धर्म मानने वालों की जनसंख्या वृद्धि एक प्रतिशत भी नहीं हुई। भाजपा और संघ परिवार हमेशा आरोप लगाते रहे हैं कि ईसाई मिशनरी गरीबों का सेवा करने के नाम पर भोले-भाले लोगों को लालच, धोखा एवं धमकी देकर उनका धर्मांतरण करते हैं। झारखंड में सरकार के बाद ईसाई मिशनरी ही सबसे ज्यादा शिक्षण संस्थान चलाते हैं, जहां सबसे ज्यादा अन्य धर्मों के बच्चे पढ़ते हैं। इसलिए यदि ईसाई मिशनरी सेवा के नाम पर उनका धर्मांतरण कराते हैं तो राज्य में ईसाई धर्म मानने वालों की जनसंख्या सबसे ज्यादा होनी चाहिए थी। लेकिन हकीकत में ईसाई धर्म मानने वालों की जनसंख्या सामान्य वृद्धि से भी कम है। इसका अर्थ यह है कि धर्मांतरण का आरोप ही बेबुनियाद है और भाजपा आदिवासियों को सरना-ईसाई के नामकर बांटकर सिर्फ अपनी राजनीति चमकाने के लिए धर्मांतरण का राग अलापती रहती है। भाजपा नेताओं को पता है कि धर्म का मुद्दा आफिम की तरह काम करता है और यदि वे इसे आदिवासियों के दिमाग में घुसाने में सफल रहते हैं तो उनके लिए वोट बटोरना बहुत आसान हो जायेगा और वे सत्ता पर हमेशा काबिज रहेंगे।

यदि हम धर्मांतरण के दावों को आदिवासियों के बीच परखें तो स्थिति और भी अलग दिखती है। आदिवासियों का धर्म आधारित जनसंख्या विभाजन दर्शाता है कि वर्ष 2001 में सरना धर्म मानने वाले आदिवासियों की जनसंख्या 45.1 प्रतिशत थी जो घटकर 2011 में 44.2 प्रतिशत हो गई। इसी तरह ईसाई धर्म मानने वाले आदिवासियों की जनसंख्या 2001 में 14.5 प्रतिशत थी जो घटकर 2011 में 14.4 प्रतिशत हो गई और हिन्दु धर्म मानने वाले आदिवासियों की जनसंख्या 2001 में 39.8 प्रतिशत थी जो 2011 में घटकर 39.7 प्रतिशत हो गई। लेकिन अन्य धर्म मानने वाले आदिवासियों की जनसंख्या 2001 में 0.6 प्रतिशत थी जो बढ़कर 2001 में 1.7 प्रतिशत हो गई। इन आॅंकड़ों से यह बात स्पष्ट होता है कि सरना, ईसाई और हिन्दु धर्म मानने वाले आदिवासियों की जनसंख्या पिछले एक दशक में घटी है लेकिन अन्य धर्म मानने वाले आदिवासियों की जनसंख्या में इजाफा हुआ है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ईसाई धर्म मानने वाले आदिवासियों की जनसंख्या घट रही है, जिसका सीधा अर्थ है कि आदिवासियों का ईसाई धर्म में धर्मांतरण नहीं हो रहा है बल्कि यह भाजपा और संघ परिवार का आधारहीन आरोप है। 

सारणी 1 - झारखंड में आदिवासियों का धर्म आधारित जनसंख्या का विभाजन

क्र. स.         धर्म                                जनसंख्या प्रतिशत में
                                                 2001                 2011

1.              सरना                          45.1                  44.2

2.              ईसाई                         14.5                 14.4

3.               हिन्दु                          39.8                39.7

4.               अन्य                          0.6                   1.7

जनगणना के आॅंकड़ों से स्पष्ट है कि सरना आदिवासियों को ईसाई मिशनरियों से कोई खतरा नहीं है बल्कि यदि सरना समाज को किसी धर्म से सबसे ज्यादा खतरा है तो वह है हिन्दु धर्म क्योंकि झारखंड में 39.7 प्रतिशत आदिवासी हिन्दु धर्म को मानते हैं जबकि मात्र 14.5 प्रतिशत आदिवासी ही ईसाई धर्म के अनुयायी हैं। यहां मौलिक प्रश्न यह है कि यदि ईसाई धर्म मानने वाले 14.5 प्रतिशत आदिवासी धर्मांतरण के दायरे में आते हैं तो हिन्दु धर्म मानने वाले 39.7 प्रतिशत आदिवासी धर्मांतरण के दायरे में क्यों नहीं आते हैं? झारखंड में घरवापसी के नाम पर आदिवासियों का निरंतर हिन्दुकरण किया जा रहा है और इसी सच्चाई को छुपाने के लिए भाजपा और संघ परिवार धर्मांतरण का राग अलापते रहते हैं। हकीकत यह है कि भाजपा और संघ परिवार ने आदिवासियों के ईसाई धर्म में धर्मांतरण का झूठा इमारत खड़ा किया है और उसी झूठ को उनके नेता लगातार बोलते रहते हैं ताकि सरना आदिवासी लोग झूठ को सच मान लेंगे। फलस्वरूप, सरना आदिवासी लोग ईसाई धर्म मानने वाले आदिवासियों से नफरत करेंगे और यह भाजपा के वोट बैंक में तब्दील होगा।

यहां सवाल यह भी है कि भाजपा और संघ परिवार ईसाई मिशनरियों को क्यों निशाना बनाते हैं और अभी धर्मांतरण का शोर फिर से क्यों मचा रहे हैं? मिशनरियों ने आदिवासियों को उनकी पहचान, अस्मिता, स्वायत्तता, भाषा, संस्कृति, विरासत और अस्तित्व के बारे में बड़े पैमाने पर जागरूक किया है। फलस्वरूप, आदिवासी लोग लगातार संघर्ष कर रहे हैं। फलस्वरूप, संघ परिवार आदिवासी अस्तित्व को मिटाने के प्रयास में असफल हो चुका है इसलिए ईसाई मिशनरियों पर हमला बोलते रहता है। इसी तरह झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास और भाजपा नेताओं के द्वारा धर्मांतरण के मुद्दे को उछालना और धर्मांतरण बिल लाने का वादा के पीछे का मूल मकसद है सीएनटी/एसपीटी संशोधन कानूनों के खिलाफ चल रहे जनांदोलन एवं जनाक्रोश को ढंठा करते हुए आदिवासियों को सरना और ईसाई के नाम पर बांटकर रखना क्योंकि सीएनटी/एसपीटी कानूनों में संशोधन के बाद झारखंड में राज्य सरकार एवं भाजपा के खिलाफ आदिवासियों के बीच जबर्दस्त आक्रोश है, जो यदि 2019 तक बरकरार रहता है तो भाजपा को सत्ता से हाथ धोना पड़ेगा। इसलिए भाजपा और संघ परिवार धर्मांतरण को फिर से राज्य का सबसे बड़ा मुद्दा के रूप में प्रस्तुत कर रहे है। लेकिन क्या भाजपा और संघ परिवार के नेता सीएनटी/एसपीटी संशोधन के मसले पर एकजुट हुए आदिवासियों को धर्म के नाम पर तोड़ने में सफल होगेें या आदिवासी लोग एकजुट होकर अपनी माटी, पहचान और अस्तित्व को बचाने में कामयाब होंगे?

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