ग्लैडसन डुंगडुंग
भाजपा धर्मांतरण को झारखंड का सबसे बड़ा मुद्दा बनाने में लगी हुई है क्योंकि राज्य की भाजपा सरकार सीएनटी/एसपीटी
कानूनों में संशोधन, लोगों को मूलभूत सुविधा उपलब्ध कराने
और राज्य के विकास एवं सुशासन के मोर्चे पर पिट चुकी है। खुफिया एजेंसियों ने सरकार को आगाह कर दिया है कि सीएनटी/एसपीटी कानूनों में संशोधन की वजह से भाजपा और आर.एस.एस. का गढ़ माना जाने वाला छोटानागपुर क्षेत्र
के आदिवासी भाजपा से बहुत नाराज हैं और पार्टी को इसका खमियाजा भुगतना पड़ सकता है। भाजपा को यह बात मालूम है कि छोटानागपुर क्षेत्र में हारने का अर्थ है राज्य का सŸ गवांना। यह बहुत स्पष्ट हो चुका है कि 2019 के चुनाव में धर्म आधारित विवाद
ही भाजपा को बचा सकता है। ऐसी परिस्थिति में आदिवासी एकता को तोड़ने के लिए धर्मांतरण का मुद्दा ही सबसे कारगार है। इसलिए धर्मांतरण को राज्य का सबसे बड़ा मुद्दा बनाने के लिए भाजपा के नेता बड़े पैमाने पर झूठ का सहारा ले रहे हैं। केन्द्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री
और संघ प्रचारक इसमें जुटे हुए हैं। लेकिन यहां मौलिक सवाल यह है कि भाजपा नेताओं को धर्मांतरण के मसले पर झूठ बोलने, लोगों
को गुमराह करने और झूठा आँकड़ा पेश करने की क्यों जरूरत पड़ रही है?
झारखंड में ईसाई धर्मावलंबियों की जनसंख्या क्रमशः वर्ष 1951 में 4.1 प्रतिशत
था, 1961 में 4.1 प्रतिशत,
1971 में 4.3 प्रतिशत, 1981 में 3.9 प्रतिशत, 1991 में 3.7 प्रतिशत, 2001 मे 4.1 प्रतिशत एवं वर्ष 2011 में यह 4.3 प्रतिशत है। इसका अर्थ यह है कि राज्य में ईसाई धर्मावलंबियों की जनसंख्या में पिछले सात दशकों में 1 प्रतिशत की भी वृद्धि नहीं हुई है। ऐसी स्थिति में धर्मांतरण राज्य के लोगों लिए कोई मुद्दा नहीं है इसलिए भाजपा नेता झूठ बोलकर, लोगों को गुमराह कर और फर्जी आँकड़ा पेश कर इसे मुद्दा बनाने में लगे हुए हैं। इसकी शुरूआत झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने ही की है। सीएनटी/एसपीटी
कानूनों के संशोधन के मसले पर घुटने टेकने के बाद इस मसले को दफन करने के लिए उन्होंने धर्मांतरण का मुद्दा उछाला क्योंकि ऐसी स्थिति बन गई थी कि उनका कुर्सी जाना तय था। मुंख्यमंत्री की कुर्सी बचाने तथा भाजपा की साख को वापस लाने लिए उन्होंने बड़ी चतुराई के साथ धर्मांतरण का मुद्दा उछाल दिया। इसके लिए योजनाबद्ध तरीके
से भाजपा के अनुसूचित जनजाति मोर्चा
के द्वारा 15 जून 2017 को गुमला में सम्मेलन किया गया, जिसमें रघुवर दास ने कहा कि धर्मांतरण झारखंड की सबसे बड़ी समस्या है इसलिए उनकी सरकार धर्मांतरण को रोकने के लिए विधानसभा के मानसून सत्र में विधेयक पेश करेगी।
झारखंड सरकार
ने 12 अगस्त 2017 को झारखंड विधानसभा में ‘झारखंड धर्म स्वतंत्र विधेयक 2017’ पारित कर दिया। इस विधेयक पर विधानसभा में सरकार की ओर से बहस में हिस्सा लेते हुए राधाकृष्ण किशोर ने ईसाई धर्मावलंबियों की जनसंख्या का आँकड़ा पेश करते हुए इसे तिल का ताड़ बना दिया। उन्होंने कहा कि धर्म स्वतंत्र विधेयक राज्य गठन के समय ही आना चाहिए था। राज्य में लालच, पैसा और डरा-धमकाकर धर्म परिवर्Ÿन के कई उदाहरण हैं। राज्य में 2001 में क्रिश्चियन समुदाय की जनसंख्या
10,93,383 थी जो 2011 में बढ़कर 14,18,608 हो गयी है। उनके कहने का तात्पर्य यह था कि धर्मांतरण की वजह से ईसाईयों की जनसंख्या वृद्धि हो रही है। क्या सचमुच ईसाईयों की जनसंख्या वृद्धि चिंता का विषय होना चाहिए? क्या यह असामान्य जनसंख्या वृद्धि है? दूसरे धर्मों की जनसंख्या वृद्धि का स्तर क्या है? सरकार ने दूसरे धर्मो का आँकड़ा पेश क्यों नहीं किया? क्यों सिर्फ ईसाई समुदाय को निशाना बनाया गया? क्या सरकार किसी एक समुदाय को इस तरह से निशाना बना सकती है? चूंकि सरकार के पास धर्मांतरण विरोधी
कानून बनाने के लिए कोई आधार मौजूद नहीं था इसलिए ईसाई समुदाय के सामान्य आँकड़ा को विधानसभा में गलत ढंग से प्रस्तुत किया गया।
यदि हम झारखंड में धार्मिक जनसंख्या वृद्धि का परीक्षण करें तो तस्वीर कुछ और ही सामने आती है। राज्य में हिन्दु धर्म मानने वालों की जनसंख्या वर्ष 2001 में 1,84,75,681 थी जो बढ़कर 2011 में 2,23,76,051 हो गयी यानी एक दशक में हिन्दु धर्मावलियों
की जनसंख्या में
39,00,370 का इजाफा हुआ। इसी तरह मुस्लिम धर्मावलंबियों की जनसंख्या वर्ष 2001 में 37,31,308 थी जो बढ़कर 2011 में 47,93,994 हो गयी यानी एक दशक में मुस्लिम धर्मावलियों की जनसंख्या में 10,62,686 की वृद्धि हुई। यदि हम ईसाई धर्म मानने वालों की जनसंख्या देखें तो यह वर्ष 2001 में 10,93,382 थी जो बढ़कर 2011 में 14,18,608 हो गयी यानी एक दश में ईसाई धर्मावलियों की जनसंख्या में मात्र
3,25,226 का इजाफा हुआ। इसी तरह सरना धर्मावलंबियों की जनसंख्या वर्ष 2001 में 35,144,72 थी जो बढ़कर 2011 में 42,35,786 हो गयी यानी एक दश में सरना धर्मावलियों की जनसंख्या में 7,21,314 की वृद्धि हुई। हकीकत में यह सामान्य वृद्धि है इसमें चिंता करने जैसा कोई बात नहीं है। लेकिन भाजपा नेताओं ने ईसाई समुदाय की जनसंख्या वृद्धि को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया। क्या ईसाई समुदाय के लोग बच्चे पैदा नहीं करते हैं? क्या सिर्फ ईसाई समुदाय की जनसंख्या ज्यों का त्यों स्थिर होनी चाहिए?
सारणी 1 - झारखंड
के प्रमुख धर्मों के जनसंख्या की स्थिति
क्र.स. धर्म जनसंख्या वृद्धि की स्थित जनसंख्या प्रतिशत में
2001 2011 वृद्धि 2011
1. हिन्दु 18475681 22376051 3900370 67.8
2. मुस्लिम 3731308 4793994 1062686 14.5
3. ईसाई 1093382 1418608 325226 4.3
4. सरना 3514472 4235786 721314 12.8
स्रोत: जनगणना
रिपोर्ट 2011 एवं 2011 नोट: जनगणना रिपोर्ट में सरना धर्म को अन्य धर्म के रूप में दर्शाया गया है।
इसकी कड़ी में धर्मांतरण के मुद्दे को हवा देने के लिए 17 अगस्त 2017 को रांची में आयोजित प्रेस
वार्ता में केन्द्रीय कृषि राज्यमंत्री सुदर्शन
भगत ने ईसाई मिशनरियों पर झारखंड को चारागाह बनाने का आरोप लगाते हुए राज्य का धार्मिक आँकड़ा पेश करते हुए ईसाई समुदाय को निशाना बनाया। उन्हांने दावा किया कि यह आँकड़ा जनगणना रिपोर्ट
2011 से लिया गया है। लेकिन उन्होंने जो आँकड़ा पेश किया वह फर्जी निकला। सुदर्शन भगत के द्वारा पेश किये गये जनगणना रिपोर्ट 2011 के अनुसार झारखंड में वर्ष 2011 में 21.42 प्रतिशत हिन्दु,
28.48 प्रतिशत मुस्लिम एवं 29.74 प्रतिशत ईसाई थे। उनके अनसुर झारखंड में 2011 में ईसाईयों की जनसंख्या सबसे ज्यादा थी। असल मं वे धर्मांतरण को राज्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बताने की कोशिश में जुटे थे। लेकिन बहुत जल्द ही झूठ का पर्दाफास हो गया।
हकीकत में जनगणना रिपोर्ट 2011 के अनुसार झारखंड में हिन्दु धर्म के अनुयायी 67.8 प्रतिशत, मुस्लिम
14.5 प्रतिशत, ईसाई 4.3 प्रतिशत,
सिख 0.2 प्रतिशत, बौद्ध
0.03 प्रतिशत, जैन 0.05 प्रतिशत,
अन्य धर्म के रूप में स्थापित सरना धर्मावलंबी 12.8 प्रतिशत एवं धर्म नहीं मानने वाले 0.2 प्रतिशत हैं। राज्य में हिन्दु धर्मावलंबियों
की संख्या सबसे ज्यादा है। लेकिन भाजपा नेता ने जनगणना का झूठा आंकड़ा पेश कर राज्य को गुमराह किया। क्या एक केन्द्रीय मंत्री को एक विशेष समुदाय पर हमला करने के लिए इस तरह झूठा आंकड़ा का सहारा लेना चाहिए? क्या भाजपा ने झारखंड का अलग से जनगणना करायी थी? क्या सुदर्शन भगत को ऐसा झूठा आंकड़ा पेश करना चाहिए? क्या सुदर्शन भगत इसके लिए झारखंड की जनता से माफी मांगेंगे? इतना बड़ा झूठ बोलने के लिए केन्द्रीय मंत्री को क्या सजा मिलनी चाहिए? क्या सुदर्शन भगत ईसाई समुदाय से मांफी मांगेंगे? यहां सबसे हास्यास्पद बात यह है कि कृषि कर्ज चुकता नहीं कर पाने के कारण राज्य में किसान आत्महत्या कर रहे हैं लेकिन केन्द्रीय कृषि राज्यमंत्री को धर्मांतण की ज्यादा चिंता है। उन्होंने किसानों
के सवाल पर कोई बात तक नहीं की। क्या यह शर्मनाक नहीं है?
भाजपा नेताओं को मालूम होना चाहिए कि झूठ के बुनियाद पर गढ़ा गया धर्मांतरण का मुद्दा ज्यादा दिन तक टिकने वाला नहीं है। झारखंडी लोग भाजपा सरकार से स्थानीय नीति, भूमि बैंक के नाम पर जमीन लूट, सरना कोड, भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पनस्र्थापना कानून 2013 के संशोधन, प्राकृतिक संसाधनों का कारपोरेट लूट जैसे मुद्दे पर घेरेंगे। इसलिए भाजपा नेताओं को बालू पर इमारत बनाने के बजाय समय रहते राज्य के मूल मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए इनका समाधान निकालना चाहिए क्योंकि सरना-ईसाई का मुद्दा उन्हें ज्यादा दिनों तक सŸ नहीं दिलायेगा।
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