ग्लैडसन डुंगडुंग
सारणी-1. झारखंड विधानसभा सीटों की क्षेत्रवार स्थिति
क्र.सं. क्षेत्र विधानसभा सामान्य आरक्षित सीटों की स्थिति
कुल सीटें सीटें एसटी एससी कुल
1. संताल परगना 18 10 07 01 08
2. उŸरी छोटानागपुर 25 21 00 04 04
3. दक्षिणी छोटानागपुर 15 03 11 01 12
4. कोल्हान 14 04 09 01 10
5. पलामू 09 06 01 02 03
कुल 81 44 28 09 37
सारणी-2. झारखंड विधानसभा के आरक्षित सीटों की पार्टीवर स्थिति 2014
राजनीति संताल परगना उ. छोटानागपुर द.छोटानागपुर कोल्हान पलामू कुल सीट
पार्टी एसटी एससी एसटी एससी एसटी एससी एसटी एससी एसटी एससी एसटी एससी कुल
भाजपा 02 01 00 02 06 01 02 00 01 01 11 05 16
जेएमएम 05 00 00 00 02 00 06 00 00 00 13 00 13
कंग्रेस 00 00 00 00 00 00 00 00 00 00 00 00 00
जेवीएम 00 00 00 02 00 00 00 00 00 01 00 03 03
आजसू 00 00 00 00 02 00 00 01 00 00 02 01 03
झा.पा. 00 00 00 00 01 00 00 00 00 00 01 00 01
निर्दलीय 00 00 00 00 00 00 01 00 00 00 01 00 01
कुल 07 01 00 04 11 01 09 01 01 02 28 09 37
झारखंड में इस वर्ष विधानसभा चुनाव होना है जो अप्रैल में लोकसभा चुनाव के साथ भी हो सकता है, लेकिन यह केन्द्र सरकार के इच्छा पर निर्भर करता है। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव परिणाम तथा आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बढ़ती ठंढ के बीच चैक-चैराहे, चाय-पकौड़े की दुकान और सामाजिक-राजनीतिक गलियारों का चुनावी हवा धीरे-धीरे गर्म हो रही है। तीन राज्यों के विधासभा चुनाव परिणाम से विपक्षी खेमें की उम्मीदों को पंख लग चुका है और भाजपा के अंदर खलबली मच गई है। यही कारण है कि झारखंड में भी नेतृत्व परिवर्तन को लेकर दिल्ली में मंथन का दौर चला पड़ है। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में आदिवासियों ने भाजपा को नाकारा दिया है और यदि झारखंड के आदिवासी भी उसी रास्ते पर चलते हैं तो भाजपा को सत्ता गवांना पड़ेगा। हालांकि राज्य में कोई भी पार्टी अपने दम पर चुनाव जीतकर सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है तथा महागठबंधन के रास्ते पर जेएमएम रोड़ा बना हुआ है। इसलिए अभी सबकुछ धुंधला सा दिखाई देते हैं। जेएमएम के नेता दूध भी पीना चाहते हैं और दही भी खाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में मौलिक प्रश्न यह है कि आगामी चुनाव में झारखंड का किंगमेकर कौन होगा? क्या कांग्रेस, जेवीएम या आजसू में किंगमेकर बनने की ताकत है?
झारखंड के किंगमेकर को जानने के लिए पिछले विधानसभा चुनाव परिणाम और राज्य के राजनीतिक परिस्थितियों का आंकलन करना होगा। झारखंड में विधानसभा के कुल 81 सीटें हैं, जिनमें 44 सामान्य एवं 37 आरक्षित सीटें हैं। आरक्षित सीटों में आदिवासियों के लिए 28 एवं दलितों के लिए 9 सीटें हैं। झारखंड विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 41 है। राज्य में सामान्य वर्ग के लिए 44 सीटें हैं जो बहुमत का आंकड़ा से 3 ज्यादा है लेकिन चूंकि गैर-आदिवासी समाज का आधार व्यक्तिवादी है इसलिए वे एकजुट होंगे ऐसा नहीं लगता है। वहीं आदिवासी और दलित के लिए 37 आरक्षित सीटें हैं जो विधानसभा मं बहुमत से मात्र 4 सीटें कम हैं। ये दोनों ही समुदायों के लोग शोषित और पीड़ित हैं इसलिए यदि वे एकजुट हो जाते हैं तो राज्य की राजनीतिक स्थिति अलग हो जायेगी। लेकिन वे एकजुट न भी हो तब भी यदि वे किसी एक पार्टी या गठबंधन की ओर रूख करते हैं तो सत्ता उनको मिलना तय है। इसमें सबसे बड़ी भूमिका आदिवासी समुदाय की है, जिनके लिए 28 सीटें आरक्षित है। यदि एक पार्टी या गठबंधन इनमें से 20 से 25 सीट जीतता है तो राज्य में उनका सरकार बनना तय है। चूंकि आदिवासी समुदाय का आधार समुदायिकता है इसलिए आदिवासियों को एकजुट करना ज्यादा आसान है।
झारखंड की राजनीतिक परिदृश्य को समझने के लिए राज्य को पांच क्षेत्रों में बांटकर देखना होगा। राज्य में सबसे ज्यादा 12 आरक्षित सीट दक्षिणी छोटानागपुर में हैं, जिसमें से आदिवासियों के लिए 11 एवं दलितो के लिए 1 सीट आरक्षित है। इसके बाद कोल्हान क्षेत्र आता है जहां 10 आरक्षित सीटें हैं, जिनमें आदिवासियों के लिए 9 तथा दलितों के लिए 1 सीट शामिल है। इसी तरह संताल परगना क्षेत्र है जहां कुल 8 आरक्षित सीटे हैं, जिनमें आदिवासियों के लिए 7 एवं दलितों के लिए 1 सीट आरक्षित है। उत्तरी छोटानागपुर और पलामू क्षेत्र में दलितों के लिए क्रमशः 4 एवं 2 सीटें आरक्षित है तथा आदिवासियों के लिए दोनों ही क्षेत्रों में 1-1 सीट आरक्षित है। इससे स्पष्ट है कि झारखंड में सत्ता हासिल करने के लिए दक्षिणी छोटानागपुर, कोल्हान और संताल परगना में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों को हासिल करना पड़ेगा। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि इन तीनों क्षेत्रों में आदिवासियों का साथ मिलने वाला राजनीतिक दल को झारखंड का सत्ता मिलता तय है क्योंकि यहीं पर आदिवासियों के लिए 27 आरक्षित सीटें देखें सारणी-1 हैं।
सारणी-1. झारखंड विधानसभा सीटों की क्षेत्रवार स्थिति
क्र.सं. क्षेत्र विधानसभा सामान्य आरक्षित सीटों की स्थिति
कुल सीटें सीटें एसटी एससी कुल
1. संताल परगना 18 10 07 01 08
2. उŸरी छोटानागपुर 25 21 00 04 04
3. दक्षिणी छोटानागपुर 15 03 11 01 12
4. कोल्हान 14 04 09 01 10
5. पलामू 09 06 01 02 03
कुल 81 44 28 09 37
राज्य के वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति को देखें तो कोई भी राजनीतिक पार्टी का पकड़ आदिवासी बहुल तीनों क्षेत्रों में नहीं है। 2014 के विधानसभा चुनाव परिणाम से स्पष्ट हो जाता है कि किसी भी पार्टी के पास इसलिए बहमत नहीं आया क्योंकि कोई भी पार्टी इन क्षेत्रों के अधिकांश आरक्षित सीट नहीं जीत पाये। भाजपा ने कुल 16 आरक्षित सीटें जीती, जिनमें से 11 आदिवासी एवं 5 दलित आरक्षित सीटें शामिल हैं। इनमें से सबसे ज्यादा 6 आदिवासी सीटें दक्षिणी छोटानागपुर क्षेत्र की हैं, 2 संताल परगना, 2 कोल्हान एवं 1 सीट पलामू क्षेत्र का शामिल है। इसी तरह जेएमएम ने कुल 13 आरक्षित सीटें देखें सारणी-2 जीती, जिनमें से कोल्हान की 6 सीटें, सताल परगना की 5 सीटें तथा दक्षिणी छोटानागपुर की 2 सीटें शामिल हैं। इससे यह स्पष्ट है कि आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटें सबसे ज्यादा इन्हीं दो पार्टियों ने जीता है क्योंकि संताल परगना, कोल्हान और दक्षिणी छोटानागपुर क्षेत्र इनका गढ़ है।
भाजपा ने आरएसएस संचालित एनजीओ वनवासी कल्याण आश्रम, वनवासी सेवा आश्रम, विकास भारती इत्यादि के द्वारा दक्षिणी छोटानागपुर के उरांव आदिवासी बहुल क्षेत्रों घुसकर सरना आदिवासियों के बीच काम करते हुए सरना-ईसाई विवाद, आरक्षण, धर्मांतरण, जैसे मुद्दों को हवा देते हुए यहां कब्जा जमा लिया है। लेकिन संताल परगना और कोल्हान में भाजपा कमजोर है, जहां पकड़ मजबूत बनाने के लिए संताल-सनातन और सरना-सनातन एक हैं और धर्मांतरण एवं आरक्षण के विवाद को हवा दिया जा रहा है। चूंकि आदिवासी और दलित धर्म का आफिम खाने में सबसे आगे रहते हैं इसलिए भाजपा को काफी हद तक सफलता मिलती है। आदिवासी और दलित जितना भी मार खाये लेकिन ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद से चिपके रहते हैं क्योंकि उनके पास राजनीतिक विचारधारा का घोर अभाव है। भाजपा नेताओं को पता है कि सरना-ईसाई विवाद ही उन्हें सत्ता में बरकरार रखेगा और यदि यह विवाद थाम जाता है तो सत्ता उनके हाथ से निकल जायेगा।
झारखंड आंदोलन में दिसोम गुरू सिबू सोरेन और जेएमएम की प्रमुख भूमिका होने के कारण पार्टी का संतालपरगना और कोल्हान में पकड़ स्पष्ट दिखाई पड़ती है, जिसे भाजपा तोड़ने की कोशिश में जुटा हुआ है। यदि जेएमएम छोटानागपुर में भी अपनी पकड़ मजबूत कर ले तो राज्य का सत्ता उसी के पास होगा। लेकिन अभी उसे अपना गढ़ बचाने के लिए रात-दिन एक करना पड़ रहा है। दक्षिणी छोटानागपुर में पार्टी का विस्तार नहीं हो पा रहा है क्योंकि पार्टी प्रमुख यहां के स्थानीय मुद्दों को प्रभावी ढंग से नहीं उठा पा रहे हैं। पार्टी के पास बड़े दलित नेताओं का अभाव होने के कारण पार्टी एक भी दलित सीट जीतने में नाकामयाब है। यदि जेएमएम को लंबी राजनीति करनी है तो उसे आदिवासी और दलित दोनों समुदायों के बीच पकड़ मजबूत करना होगा। यदि जेएमएम सही रणनीति और दिशा के साथ युवाओं को ज्यादा से ज्यादा जगह देगी तो हो सकता है कि पार्टी सत्ता तक पहुंच सकती है। लेकिन फिलहल उसे यदि महागठबंधन में नहीं जाना है तो जेवीएम जैसी पार्टी के साथ गठबंधन बना लेना चाहिए क्योंकि भाजपा के साथ जाने की जेएमएम की स्थिति छत्तीसगढ़ के अजीत जोगी की पार्टी जैसी हो जायेगी।
झारखंड में कांग्रेस पार्टी का सूर्य अस्त होता दिखाई पड़ता है। पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी एक भी आरक्षित सीट नहीं जीत सकी। हालांकि उप-चुनाव में लोहारदगा और कोलेबिरा विधानसभा सीटें उसके हाथ लगा। गीता कोड़ा का कांग्रेस में शामिल होने से कोल्हान में अगले चुनाव में खाता खुलने की संभावना भी बढ़ गई है। इसी तरह जेवीएम के पास भी आदिवासी सीट नहीं है। हालांकि पार्टी ने दलितों के लिए आरक्षित तीन सीट जीता था। ऐसी स्थिति में यदि जेएमएम और जेवीएम एक साथ आ जाते हैं तो आदिवासी, दलित एवं सामान्य सीटों की तीकड़ी बन जायेगा और सत्ता उनके पास आ जायेगा। इसके अलावा आजसू, झारखंड पार्टी, जेडीयू, आरजेडी इत्यादि भी राज्य में अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। शायद अगले चुनाव में गठबंधन से अलग इनकी कोई भूमिका नहीं होगी, जिसके बारे में इनके नेता भी बखूबी जानते हैं।
सारणी-2. झारखंड विधानसभा के आरक्षित सीटों की पार्टीवर स्थिति 2014
राजनीति संताल परगना उ. छोटानागपुर द.छोटानागपुर कोल्हान पलामू कुल सीट
पार्टी एसटी एससी एसटी एससी एसटी एससी एसटी एससी एसटी एससी एसटी एससी कुल
भाजपा 02 01 00 02 06 01 02 00 01 01 11 05 16
जेएमएम 05 00 00 00 02 00 06 00 00 00 13 00 13
कंग्रेस 00 00 00 00 00 00 00 00 00 00 00 00 00
जेवीएम 00 00 00 02 00 00 00 00 00 01 00 03 03
आजसू 00 00 00 00 02 00 00 01 00 00 02 01 03
झा.पा. 00 00 00 00 01 00 00 00 00 00 01 00 01
निर्दलीय 00 00 00 00 00 00 01 00 00 00 01 00 01
कुल 07 01 00 04 11 01 09 01 01 02 28 09 37
झारखंड में राजनीतिक हालात ठीक नहीं है। झारखंड सरकार के द्वारा सीएनटी/एसपीटी कानूनों एवं भूमि अधिग्रहण कानून में किये गये संशोधन, ग्रामसभाओं की 21 लाख एकड़ जमीन को परती बताकर भूमि बैंक में डालना तथा गोड्डा में अडानी कंपनी के लिए धान की फसल पर बुलडोजर चलाकर आदिवासियों की जमीन को कब्जा करने के मामले ने आदिवासियों को भाजपा के विरोध में खड़ा कर दिया है। आजकल आदिवासियों के बीच आयोजित बैठक, सभा और सम्मेलनों में ये मुद्दे छाये हुए हैं। हालांकि तथाकथित धर्मांतरण के खिलाफ धर्म स्वतंत्रता कानून 2017, सरना-ईसाई विवाद और ईसाई मिशनरियों के 88 संस्थानों पर जांच-जांच के खेल से राज्य सरकार ने सरना आदिवासियों को खुश करने की भरपूर कोशिश की है। लेकिन सरकार को इसमें मनचाहा सफलता हासिल नहीं हो पाया है क्योंकि अधिकांश आदिवासियों के लिए उनकी ‘‘जमीन’’ उनका ‘‘धर्म’’ से बड़ा है।
आदिवासियों के मन में यह बैठ गया है कि झारखंड सरकार उनकी बची-खुची जमीन, इलाका और प्राकृतिक संसाधनों को लूटकर पूंजीपतियों को देना चाहती है तथा उनकी एकजुटता को तोड़ने के लिए उन्हें धर्म के नाम पर लड़वाया जा रहा है ताकि वे अपनी जमीन, इलाका और प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के लिए चल रहे संघर्ष में कमजोर पड़ जायं। आदिवासियों के बीच यह भी संदेश गया है कि आदिवासियों को सरना-ईसाई के नामपर लड़वाने वाले अधिकांश राजधानीवासी आदिवासी नेता जमीन दलाल हैं, जिन्होंने सरना आदिवासियों की जमीन को बेचवाकर खूब पैसा कमाया है। इसलिए उनके बातों में नहीं आना है। भाजपा नेताओं को पता है कि आदिवासियों का यह विचार आगामी चुनाव में उनसे सत्ता छीन सकता है। इसलिए अंतिम वर्ष में राज्य का नेतृत्व आदिवासी नेता के हाथ में सौपना चाहते हैं, जिसे आदिवासियों की नाराजगी दूर हो सके। लेकिन क्या यह इतना सरल नहीं है? अभी राज्य का राजनीतिक हवा विपक्षी पार्टियों के पक्ष में बह रही है। यदि समय रहते वे इसे समझ गये तो राज्य का सत्ता उनके हाथों में आ जायेगा क्योंकि भाजपा का जहाज बीच समुद्र में डगमगा रहा है।
लेकिन यहां मूल बात यह है कि झारखंड राज्य की मांग को लेकर सबसे पहले आंदोलन छेड़ने वाले आदिवासी ही राज्य में किंगमेकर की भूमिका में हं। इसलिए आगामी विधानसभा चुनाव में आदिवासी जिनकी ओर झुकेंगे, राज्य का सत्ता उन्हं ही मिलेगा। राज्य में सत्ता हासिल करने के लिए दक्षिणी छोटानागपुर, कोल्हान और संताल परगना के आदिवासियों का दिल जीतना होगा, जो इस बार बहुत आसान नहीं होगा क्योंकि वे यह जान चुके हैं कि अगला चुनाव सिर्फ किसी पार्टी के हार-जीत का प्रश्न नहीं है बल्कि यह चुनाव आदिवासी समुदाय के अस्तित्व को तय करेगा। इसी से तय होगा कि आदिवासियों की जमीन, उनका इलाका और प्राकृतिक संसाधन बचेगा या इन्हें कारपोरेट घराने बेच खायेंगे। आदिवासी अपना अस्तित्व को दांव पर नहीं लगायेंगे। जो भी हो फैसला उन्हें ही करना है क्योंकि वे ही झारखंड के किंगमेकर हैं.
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