गुरुवार, 3 जनवरी 2019

कोलेबिरा उप-चुनाव परिणाम के मायने

ग्लैडसन डुंगडुंग

आजकल फेसबुक ने लाखों की संख्या में राजनीतिक विश्लेषकां को पैदा किया है। चुनाव परिणाम की घोषणा होने से पहले ही ये लोग हार और जीत के कारणों का विश्लेषण फेसबुक में भर देते हैं। इनमें से कुछ विश्लेषण अच्छे भी होते हैं लेकिन अधिकांश का कोई सिर-पैर नहीं होता है। जिनको जो मन में आया अपने वाल पर लिख दिया। ऐसे राजनीतिक विश्लेषण सिर्फ भ्रम पैदा करते हैं जानकारी और ज्ञान नहीं। हालांकि कोलेबिरा उप-चुनाव परिणाम को लेकर कई जानकारों का विश्लेषण भी हकीकत के बहुत करीब नहीं है। चुनाव परिणाम इतना कैसे बदल गया? क्या यह मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव परिणामों का प्रभाव है? क्या यह चुनाव परिणाम 2019 के चुनाव पर प्रभाव डालेगा? कांग्रेस नेता कह रहे हैं कि यह पार्टी की जीत है और जेवीएम के नेता दावा कर रहे हैं कि यह गठबंधन की जीत है। लेकिन सवाल यह है कि क्या कोलेबिरा उप-चुनाव कांग्रेस-जेवीएम गठबांधन की जीत है या यह कांग्रेस पार्टी की जीत है? 

जमीनी हकीकत बताता है कि यह न तो कांगेरस-जेवीएम गठबंधन और न ही कांग्रेस पार्टी की जीत है बल्कि यह विक्सल कोंगाड़ी की जीत है। यदि इस उप-चुनाव में विक्सल कोंगाड़ी के जगह पर कांग्रेस पार्टी के टिकट से बंजामिन लकड़ा, नियेल तिर्की या थेओदोर किड़ो चुनाव लड़ते तो कांग्रेस पार्टी शायद तीसरा या चैथा स्थान पर होता। विक्सल कोंगाड़ी को अपने काम के बदौलत जीत मिली है। विक्सल कोंगाड़ी ने झारखंड जंगल बचाओ आंदोलन के माध्यम से कोलेबिरा विधानसभा क्षेत्र के मुंडा बहुल इलाकों में बड़े पैमाने पर वन अधिकार अभियान चलाया। ग्रामसभाओं को मजबूत किया और गांव-गांव में जंगलों पर आदिवासियों के दावे से संबंधित साईबोर्ड गड़वाया। जिला प्रशासन ने उनके खिलाफ मुकदमा भी किया और कई साईनबोर्ड भी उखड़वाये। लेकिन यह अभियान इतना सशक्त था कि विक्सल को एक जुझारू नेता बना दिया। विक्सल ने इस अभियान के द्वारा स्वयं को स्थापित करने के लिए मीडिया का भी बखूबी इस्तेमाल किया। इसी अभियान के बदौलत ही उसे कांग्रेस पार्टी का टिकट भी मिला। 

कोलेबिरा विधानसभा में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन पिछले दो चुनावां में बहुत बुरा रहा था। पार्टी को 2009 में 13,499 वोट और 2014 में 10,709 वोट मिले थे जबकि उक्त चुनावों में बंजामिन लकड़ा और थेओदोर किड़ो को पार्टी ने चुनाव में उतारा था। सिमडेगा जिले में कांग्रेस पार्टी दो गुटों में बंटा हुआ है। एक गुट बंजामिन लकड़ा के दिशा-निर्देश पर चलता है और दूसरे गुट पर नियेल तिर्की कब्जा जमाये हुए है। इस उप-चुनाव में भी दोनों गुट अपना-अपना उम्मीदवार को टिकट दिलवाने में लगे रहे। हालांकि इसमें बंजामिन गुट ने बाजी मार ली और विक्सल को टिकट मिला। लेकिन यह चुनाव परिणाम शायद कांग्रेस को सिमडेगा में एकजुट कर सकता है। यदि दोनों गुट मिल जाते हैं तो आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी सिमडेगा और कोलेबिरा दोनों सीट जीत सकती है। लेकिन इसके कोलेबिरा की तरह ही सिमडेगा में भी वंशवाद को छोड़कर सही उम्मीदवार का चयन करना होगा जो शायद कठिन होगा क्योंकि सिमडेगा विधानसभा के लिए नियेल तिर्की अपने सुपुत्र को टिकट दिलवाने के लिए जमीन-आसमान एक कर देंगे।  
यहां मौलिक प्रश्न यह है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के समर्थन के बावजूद झारखंड पार्टी चैथा स्थान पर क्यों खिसक गया? इसके कुछ मौलिक कारण स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। झारखंड पार्टी को समर्थन देने के कारण झामुमो का पूरा जिला ईकाई ही पार्टी से अलग होकर बसंत डुंगडुंग को निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतारा था। इसलिए गुरूजी का आर्शीवाद और हेमंत सोरेन का चुनाव प्रचार से मेनन एक्का को कोई लाभ नहीं हुआ। इसके अलावा राष्ट्रीय सेंगेल पार्टी का चुनाव लड़ने से झारखांड पार्टी को सबसे ज्यादा नुकशान हुआ। सेंगेल पार्टी को 23,799 वोट मिला, जो मूलतः झापा का वोट था। इसके अलावा झापा का खड़िया वोट संगेल पार्टी और भाजपा के पास चला गया। झामुमो अपनी रणनीतिक चुक के कारण सिमडेगा जिले में अपना अस्तित्व ही गवां बैठा जबकि पार्टी को पिछले चुनाव में कोलेबिरा विधानसभा में 17,055 वोट मिले थे। यदि आगामी चुनाव में महागठबंधन बनाता है तब ये दोनो सीट कांग्रेस के खाते में जायेगा जबकि झामुमो कोलेबिरा सीट पर दावा कर रहा था। अब झामुमो के पास दक्षिण छोटानागपुर में तोरपा, बिशुनपुर और गुमला सीट आयेगा।  

कोलेबिरा उप-चुनाव में भाजपा अपने बुने जाल में ही फांस गई। भाजपा पिछले दो वर्षों से धर्मांतरण, ईसाई मिशनरी और ईसाई आदिवासियों को आरक्षण से बेदखल करने की करती रही। लेकिन खड़िया वोट बैंक को हासिल करने के लिए ईसाई धर्मांवलंबी खड़िया आदिवासी बसंत सोरेंग को अपना प्रत्याशी बनाया। इससे गांड़ एवं नगेसिया आदिवासी बिदक गए। शायद भाजपा नेता यह मान चुके थे कि गोंड़ और नगेसिया भाजपा का पारंपरिक वोट बैंक है जो कहीं नहीं जायेगा। हालांकि वोट के गणित में कोई खास अंतर नहीं आया। 2014 में भाजपा के मनोज नगेसिया को 31,332 वोट मिले थे और इस बार बसंत सोरेंग को 30,685 वोट मिले। लेकिन हकीकत में भाजपा का पारंपरिक वोट कांग्रेस को मिला है। इसके अलावा 3694 लोगों ने नोटा का बटन दबाया जो निश्चितरूप से गोंड़, नगेसिया और आरक्षण विरोधियों का वोट है, जिन्होंने भाजपा को अपना संदेश देने के लिए ऐसा किया है। इसके अलावा सीएनटी/एसपीटी कानूनों में किये गये संशोधन के खिलाफ उठा जनाक्रोश का असर भी स्पष्ट दिखाई देता है। भाजपा के लिए राहत की खबर बस इतना है कि खड़िया आदिवासियों ने पहली बार बड़े पैमाने पर पार्टी के पक्ष में वोट दिया है लेकिन यह वोट स्थायी नहीं रहेगा क्योंकि खड़िया आदिवासी भाजपा के पारंपरिक वोट कभी नहीं बनेंगे। 

कोलेबिरा उप-चुनाव में सबसे बड़ा झटका सेंगेल पार्टी को लगा है क्योंकि इनके नेताओं को ऐसा लगता था कि सीएनटी/एसपीटी कानूनों में किये गये संशोधन उनके आंदोलन के बदौलत है इसलिए जनता उनको वोट देगी ही। आम तौर पर ऐसा माना जा रहा था कि सेंगेल पार्टी 2019 में महागठबांधन के वोट पर सेंधमारी करेगी। लेकिन कोलेबिरा उप-चुनाव में सेंगेल पार्टी के खड़े होने से कांग्रेस को फायदा हुआ। यदि सेंगेल पार्टी खड़ी नहीं होती तो इसका सबसे ज्यादा फायदा झापा को होता और कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ सकता था। संगेल पार्टी के नेताओं को भी यह पता चल गया कि वे कितना पानी में हैं। अब यह स्पष्ट हो गया है कि प्रत्याशी अच्छा होने से कांगेरसे पार्टी अपने बलबुते पर चुनाव जीत सकती है। 

कोलेबिरा उप-चुनाव को कई लोग जेवीएम की जीत भी बता रहे हैं जबकि सिमडेगा जिले में पार्टी का कोई बड़ा आधार नहीं है। असल में जेवीएम आदिवासियों के गढ़ में कहीं है ही नहीं। जेवीएम के पास एक भी आदिवासी सीट नहीं है और यही वजह है, जिसे झामुमो किनारा करना चाहती है। जेवीएम को पिछले चुनाव में कोलेबिरा विधानसभा में 1509 वोट मिला था। चूंकि कांग्रेस के विक्सल कोंगाड़ी ने 9658 वोंटों से जीत हासिल की है इसलिए इसमें न ही नोटा का और न ही जेवीएम की कोई भूमिका है। लेकिन इस चुनाव परिणाम से झामुमो नैतिकरूप से कमजोर होगा इसलिए जेवीएम को महागठबंधन से बाहर करना उसके बस की बात नहीं होगी। 

कोलेबिरा उप-चुनाव में पहली बार आदिवासी वोट को सामुदायिक स्तर पर धुर्वीकरण करने की कोशिश भी की गई। चूंकि यह खड़िया और मुंडा आदिवासी बहुल क्षेत्र है, जहां इन दोनों समुदायों के मतदाताओं की संख्या लगभग बराबर है। लेकिन एनोस एक्का ने चर्च की सहायता से इन दोनों समुदायों के मतदाताओं को अपने पक्ष में करते हुए लगातर तीन बार जीत दर्ज की थी। लेकिन इस बार खड़िया समुदाय के आदिवासियों ने यहां से अपना प्रतिनिधि भेजने का मन बना लिया था। इसी को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने खड़िया आदिवासी को टिकट दिया। इसके विपरीत कांग्रेस ने मुंडा आदिवासी को टिकट दिया। कांगेरस के वोट बैंक को काटने के लिए सेंगेल पार्टी ने भी मुंडा आदिवासी को ही अपना प्रत्यासी बनाया था। खड़िया महासभा ने भी झामुमो के बागी उम्मीदवार को अपना समर्थन दिया था लेकिन खड़िया वोट भाजपा, कांग्रेस, संगेल, निर्दलीय के बीच बांट गया जबकि मुंडा वोट थोक के भाव से विक्सल कोंगाड़ी को मिला। 

कोलेबिरा उप-चुनाव के परिणाम का प्रभाव 2019 के चुनाव में जरूर दिखाई देगा। झारखंड में लगातार तीन उप-चुनाव जीतने के बाद झामुमो को लग रहा था कि वहीं किंग है और किंगमेकर भी। लेकिन अब हवा का रूख बदल गया है। अगामी चुनाव में किंग कौन होगा कहना अभी मुश्किल है लेकिन निश्चित रूप कांगेरस ही किंगमेकर की भूमिका में होगी। 2014 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के पास एक भी आदिवासी विधायक नहीं थे, लेकिन दो उप-चुनावों में जीत और गीता कोड़ा का पार्टी में शामिल होने से कांग्रेस काफी मजबूत हुई है। अब यह भी स्पष्ट हो चुका है कि राज्य में महागठबंधन बने या नहीं लेकिन भाजपा की विदाई तय है और यदि महागठबंधन बन जाता है तब झारखंड भी छत्तीसगढ़ के रास्ते पर जायेगा।     

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