ग्लैडसन डुंगडुंग
17 जुलाई 2019। आदिवासियों की जमीन लूटने के लिए देश के विभिन्न राज्यों में किये गये जनसंहारों के इतिहास में और एक भयावह अध्याय। यह अध्याय जुड़ा है उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिलान्तर्गत मूर्तियां पंचायत के उम्भा और सपही गांव के गोड़ आदिवासियों की जनसंहार का। यह जनसंहार प्रायोजित था। सत्ता चलाने वाले सवर्णों के द्वारा। 32 ट्रैक्टर, दो दर्जन हथियार बंद सहित 300 हमलावर, 10 लोगों की निर्मम हत्या, 4 लोग गंभीररूप से घायल एवं सैकड़ों लोग चोटिल। बिहार से बंदूकधारी मंगवाकर हमला किया गया। क्या यह सब अचानक हो गया? क्या सत्ता को इसकी भनक तक नहीं थी? क्या जिला प्रशासन कुछ नहीं जानता था? निश्चित तौर पर इसके बारे में सबलोग जानते थे। यह जमीन के लिए जनसंहार है। इसका सबूत भी है। यूपी के उप-मुख्यमंत्री डा. दिनेश शर्मा ने इस जनसंहार को मामूली घटना करार दिया। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि आदिवासी कब से जमीन के मालिक हो गए? प्राचीनकाल से इनका काम मल-मूत्र उठाने और बेगार करने का रहा है। फिर इनके पास कहां से जमीन आया और वे कैसे मालिक बन गए? इनका काम केवल खेतों में मजदूरी करने का रहा है।
यह सवर्णों के द्वारा प्रायोजित जनसंहार है। गोड़ आदिवासियों की 638 बीघा जमीन को लूटने के लिए। गोड़ आदिवासी उक्त जमीन पर सदियों से जोत-कोड़ रहे हैं। यह इलाका जंगल का इलाका है, जहां वे रहते हैं। उनके पूवर्जों ने जंगलों को साफकर खेती योग्य जमीन बनाया। यहां अब जंगल न के बराबर है इसलिए उनकी आजीविकास पूर्णरूप से खेती पर निर्भर है। आदिवासी उक्त जमीन का पट्टा भी मांगते रहे हैं लेकिन उन्हें पट्टा नहीं दिया गया। बल्कि सरकार के नौकरशाहों के द्वारा बड़ी चलाकी से उक्त जमीन को कानूनी जामा पहनाकर गोड़ आदिवासियों से छीनने की पूरी कोशिश की गई। इसके लिए सबसे पहले ‘आदर्श कापरेटिव सोसाईटी’ का गठन किया गया। इसके बाद 17 दिसंबर 1955 को राबर्ट्गंज के तहसीलदार के द्वारा उक्त जमीन को उक्त सोसाईटी के नाम पर लिखा लिया गया। लेकिन 1966 में उत्तर प्रदेश में सहकारिता समिति अधिनियम खत्म हो गया। इस तरह से जमीन सोसाईटी से मुक्त हो गया। आदिवासी लोग जमीन पर जोतते-कोड़ते रहे और उसका मालिकाना हक के लिए सरकारी बाबुओं के दफ्तरों का चक्कर काटते रहे। लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा।
इसी बीच पटना निवासी आईएएस अफसर प्रभात कुमार मिश्रा मीरजापुर के जिलाधिकारी बनाये गये। तब सोनभद्र अलग जिला नहीं था बल्कि मीरजापुर के अन्तर्गत आता था। प्रभात कुमार मिश्रा ने अपने पद और रूतवा का गलत इस्तेमाल करते हुए 6 सितंबर 1989 को उक्त जमीन को अपने, पत्नी आशा मिश्रा, विनीत शर्मा और भानु शर्मा के नाम पर लिखवा लिया। लेकिन आदिवासियों की एकजुटता के कारण वे जमीन कब्जा नहीं कर सके। जब आदिवासियों को पता चला कि जमीन किसी और के नाम पर लिखवा लिया गया है तक उन्होंने इस मामले को अंचल, जिलाधिकारी एवं आयुक्त के पास दर्ज कराया। लेकिन सभी जगहों पर उनके दावों को खारिज कर दिया गया। फिर आदिवासियों ने न्यायालय का शरण लिया। जमीन को हथियाने के लिए प्रभात कुमार मिश्रा ने अपने ताकत और पहुंच का खूब इस्तेमाल किया। फिर भी आदिवासियों के विरोध के कारण जमीन को कब्जा नहीं कर सका तब उन्होंने एक नयी रणनीति अपनायी, जिसके तहत जमीन के एक हिस्से को स्थानीय दबंगों को बेचकर जमीन पर कब्जा शुरू करने की मुहिम छेड़ी।
17 अक्टूबर 2017 को प्रभात कुमार मिश्रा ने 140 बीघा जमीन को गांव के दबंग ग्रामप्रधान यज्ञदत्त गुजर को बेच दिया। 6 फरवरी 2019 को उक्त जमीन की दखिल खारिज कर दी गई। गुजर यहां पलायन करके आया था, जो अपने दबंगई के कारण गांव की जमीन कब्जाकर स्थानीय निवासी बन गया। लेकिन मिश्रा से खरीदने के बाद भी उक्त जमीन पर गुजर कब्जा नहीं कर पाया। जमीन को आदिवासी ही जोत-आबाद करते रहे। गुजर ने आदिवासियों से जमीन खाली करवाले के लिए प्रशासन का सहारा लिया लेकिन आदिवासियों की एकजुटता एवं प्रतिकार के सामने प्रशासन घूटने टेक दिया। अंत में गुजर और मिश्रा ने मिलकर जनसंहार का खूनी खेल खेला।
जनसंहार के बाद उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने इसके लिए पूर्व के कांग्रेस सरकार को जिम्मेवार ठहराया है ठीक उसी तरह जैसे देश के प्रत्येक समस्या के लिए नरेन्द्र मोदी और अमित शाह, कांग्रेस और नेहरू को जिम्मेवार ठहराते हैं। अब यह फिक्स मैच बन चुका है। सत्ताधीश जिम्मेवारी से बचना चाहते हैं। यूपी में कांग्रेस के अलावा भाजपा, बसपा और सपा भी सत्ता में रह चुके हैं लेकिन जनसंहार की जिम्मेवारी सिर्फ कांग्रेस पर। यह अद्भूत है! इतना बड़ा जनसंहार होने के बाद भी अब यूपी में जंगल राज नहीं है। मैं हैरान हॅं। यूपी में सपा और बसपा, बिहार में आरजेडी और झारखंड में जेएमएम व उसके सहयोगी दलों के शासनकाल में ऐसी घटना घटने पर उक्त शासन को जंगल राज बताने में एक संकेड का देरी नहीं करने वाली मीडिया कहां गुम हो गई है?
इस जनसंहार के लिए मूलरूप से प्रभात कुमार मिश्रा, अन्य नौकरशाह और स्थानीय पुलिस जिम्मेवार हैं, जिन्होंने जमीन पर वर्षों से काबिज आदिवासियों को उसका पट्टा निर्गत करने के बजाय अपने पदों का दुरूपयोग करते हुए आदिवासियों से उनकी जमीन छीनने की कोशिश की और उनका जनसंहार करवाया। घटना के दिन पुलिस ने सुबह में आदिवासियों को थाना बुलाया था और थाना नहीं जाने की स्थिति में कोई बड़ी घटना की ओर इशारा किया था। इसका क्या अर्थ है? पुलिस, प्रशासन और जमीन माफिया के बीच बने मजबूत गांठजोड़ ही इस जनसंहार को अंजाम दिया है। इसलिए इस मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए। इसकी से स्पष्ट होगा कि गोड़ आदिवासियों के जनसंहार का असली दोषी कौन-कौन हैं। गोड़ आदिवासियों को हिन्दू बनाने वाला संघ परिवार कहां है? क्या संघी इन्हें न्याय दिलाने के लिए लड़ाई लड़ेंगे? क्या संघियों के गोद में बैठे आदिवासियों को अब अपनी आंखें नहीं खोलनी चाहिए?
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