सोमवार, 17 नवंबर 2014

चंचल परी थी वो

- ग्लैडसन डुंगडुंग -












चंचल परी थी वो
अपने स्वतंत्र दुनियां की
उसे बांधने की मेरी कोशिश ने
वक्त से पहले 
उड़ने को कर दिया मजबूर उसे। 

अंशू, दर्द और तड़पन
शेष थे मेरे हिस्से में
बेवशी, खामोशी और लाचारी
शेष थे मेरे किस्से में
अब खोने को कुछ रहा नहीं
और पाने की चाहत भी नहीं है मेरी।

गम, दुःख और पीड़ा 
जीवन के साथी बने रहेंगे
कागज, कलम और शब्द
बने हैं जीवन यात्रा के हमसफर। 

किस-किस को साझा करूं
अंशू अपनी 
किस-किस को सुनाऊं 
गाथा जीवन की
अब तो सुनाने की ताकत भी नहीं है मेरी। 

सवेरे होने की परिकल्पना कर
मुस्कुराने की कोशिश में जुट जाता हूँ 
अंधेरा होने का भय 
मुस्कुराहट छीन लेता है। 

एक उम्मीद लिये फिर
बिस्तर से उठ खड़ा हो जाता हूँ 
उसे खोने का गम
नींद की आगोश में ढकेल देता है।
पर सोचकर यह 
दिल को तसल्ली देता हूँ 
चंचल परी थी वो
अपने स्वतंत्र दुनियां की।  

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