रविवार, 9 जून 2019

लैंड बैंक और वन अधिकार

ग्लैडसन डुंगडुंग

झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 55 मिलोमीटर की दूरी पर खूंटी जिले के मुड़हू प्रखंड में स्थिति है मुंडाओं का गांव पेरका। जेठ की दोपहर में गांव में सन्नाटा पसरा हुआ था। अधिकांश मुंडा लोग गर्मी और लू से बचने के लिए अपने-अपने घरों के अंदर थे। सिर्फ दो-चार लोग पेड़ों की छाया मेें खटिया पर आराम फरमा रहे थे। झारखंड सरकार के द्वारा तैयार किये गये लैंड बैंक की सूची को लेकर मैं गांव पहुंचा हुआ था सरकार ने राज्यभर के 20,97,003.81 एकड़ सामाजिक, धार्मिक एवं वनभूमि को लैंड बैंक में डाल दिया है, जिसे कारपोरेट घरानों को दिया जा रहा है। पेरका गांव की सामाजिक, धार्मिक एवं वनभूमि को भी लैंड बैंक में डाला गया है। मैं आज वनभूमि और लैंड बैंक की जमीनी सच्चाई को उजागर करने के लिए पेरका गांव पहुंचा हॅं। यह इसलिए जरूरी है क्योंकि भारत सरकार ने आदिवासी एवं अन्य परंपरागत वन निवासियों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को न्याय में बदलने के लिए वन अधिकार कानून 2006 बनाया था। लेकिन झारखंड की भाजपा सरकार वनभूमि जिसपर वन अधिकार कानून 2006 के तहत आदिवासी एवं अन्य परंपरागत वन निवासियों के अधिकारों को मान्यता देना है, पूंजीपतियों को देने के लिए तुली हुई है। 

हैरान होने वाली बात यह है कि झारखंड सरकार ने राज्य के 33,620 गांवों की सामाजिक, धार्मिक एवं वनभूमि को भूमि बैंक में डाल दिया है। पेरका गांव इसका एक उदाहरण मात्र है। राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के द्वारा तैयार की गई लैंड बैंक की सूची में पेरका गांव के जंगल का तीन प्लाट क्रमशः खाता सं. 44 के प्लाट सं. 1037 का 5.36 एकड़, प्लाट सं. 392 का 3.17 एकड़ एवं प्लाट सं. 88 का 3.61 एकड़ जंगल को भूमि बैंक में डाला गया है। गांव के लोग यह सुनकर हैरान हैं। पेतरूष तिड़ू बताते हैं कि पेरका गांव के जंगल को 1932 के खतियान भाग-2 में गांव को उपयोग करने का अधिकार दिया गया है। वे खतियान हाथ में लिए हुए कहते हैं, ’’यह गांव का जंगल है। सरकार इसको लैंड बैंक में कैसे डाल सकती है?’’ गांव के संतोष सोय स्तब्ध हैं। वे कहते हैं, ‘‘हमलोग पिछले 20-25 वर्षों से जंगल की रक्षा कर रहे हैं। प्रतिदिन गांव के दो व्यक्ति जंगल का पहरा देने जाते हैं ताकि कोई पेड़ न काट सके। प्रत्येक सप्ताह ग्रामसभा की बैठक होती है, जिसमें जंगल सुरक्षा और उपयोग पर चर्चा होती है। गांव की सहम्मति के बगैर सरकार ऐसा कैसे कर सकती है?’’ 

लैंड बैंक का निर्माण मौलिकरूप से औद्योगिक घरानों को जमीन उपलब्ध कराने के लिए किया गया है, जिसके बारे में स्पष्ट करते हुए झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने 27 जुलाई 2016 को कहा, ‘‘भूमि अधिग्रहण हमारे लिए कभी भी चुनौतीपूर्ण नहीं रहा क्योंकि हमारे पास लैंड बैंक में 1,75,000 एकड़ जमीन विभिन्न उधोगों के लिए तैयार है, जिसपर वे अपना व्यवसाय स्थापित कर सकते हैं। वर्तमान में हमारे पास देश का 40 प्रतिशत खनिज सम्पदा है इसलिए झारखंड 2019 तक देश का पावर हब बनेगा।’’ असल में झारखंड सरकार लैंड बैंक को आदिवासियों की जमीन अधिग्रहण करने हेतु एक रणनीति के तौर पर इस्तेमाल कर रही है। उदाहरण के तौर पर झारखंड सरकार ने पश्चिमी सिंहभूम जिले के मनोहरपुर प्रखंड में स्थित डिम्बूली गांव के 42 एकड़ परती जमीन को वेदांता कंपनी को दे दिया है। अब वेदंता कंपनी आदिवासियों से कह रही है कि उनके रैयती जमीन के चारो तरफ मौजूद परती जमीन को उसने सरकार से खरीद लिया है। इसलिए आदिवासी अपनी रैयती जमीन कंपनी को दे दे क्योंकि जमीन नहीं देने पर भी वे अपने खेतों में खेती नहीं कर पायेंगे। उनकी जमीन में जाने के लिए रास्ता नहीं बचा है।

यहां हमें यह भी समझना होगा कि आखिर झारखंड सरकार को लैंड बैंक बनाने की जरूरत क्यों पड़ी? इस सवाल का जवाब ढूढ़ने के लिए हमें झारखंड के पिछले डेढ़ दशक के इतिहास को समझना होगा। झारखंड राज्य आदिवासियों के संघर्ष के लिए जाना जाता है, जहां आदिवासी लोग अपनी पहचान, स्वायत्तता, संस्कृति, भाषा, जमीन, इलाका और प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित रखने के लिए पिछले 300 वर्षों से संघर्षरत हैं। झारखंड राज्य का निर्माण भी संघर्ष का परिणाम है। लेकिन राज्य गठन के बाद यह संघर्ष विस्थापन पर केन्द्रित हो गया क्योंकि राज्य सरकार ने देशी-विदेशी कंपनियों के साथ 74 एम.ओ.यू. पर हस्ताक्षर किया, जिसके खिलाफ लंबा संघर्ष चला। आदिवासियों के संघर्ष के कारण मित्तल, जिंदल और टाटा जैसे बड़ी कंपनियों का नया परियोजना नहीं लग पाया। कारपोरेट घरानों को लगा कि झारखंड में गैर-आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाये बगैर उनका व्यापार आगे नहीं बढ़ सकता है। 

2014 के विधानसभा चुनाव में एक रणनीति के तहत अर्जुन मुंडा जैसे दिग्गज आदिवासी नेताओं को चुनाव में हरवाया गया। इस तरह से रघुवर दास झारखंड के प्रथम गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री बने। उन्होंने भूमि अधिग्रहण को आसान बनाने के लिए 31 दिसंबर 2014 को राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के द्वारा लैंड बैंक के निर्माण हेतु सभी जिलों के उपायुक्तों को पत्र जारी करवाया। सभी जिलों से भूमि का आंकड़ा इक्टठा करने के बाद ‘झारभूमि’ के नाम से एक वेबसाईट बनाया गया, जिसे 5 जनवरी 2016 को रघुवर दास ने जारी किया। इसी के बाद ‘औद्योगिक एवं निवेश बढ़ावा नीति 2016’ बनायी गई, जिसके तरह राज्य में दो औद्योगिक गलियारा बनाने का प्रस्ताव है, जिसमें लगभग 5 लाख एकड़ जमीन का अधिग्रहण होगा। इसी के बाद 16-17 फरवरी 2017 को रांची के खेलगांव में ग्लोबल इंवेस्टर्स सम्मिट का आयोजन किया गया, जिसमें दुनियाभर के 11,200 व्यापारी शामिल हुए और 3.10 लाख करोड़ रूपये के पूंजीनिवेश से संबंधित 210 नया एम.ओ.यू. पर हस्ताक्षर किया। लैंड बैंक की जमीन को दिखाकर सरकार ज्यादा से ज्यादा पूंजीनिवेश के लिए अग्रसर रही। 

इसमें सबसे मजेदार बात यह है कि झारखंड सरकार जिस जमीन को परती यानी सरकारी जमीन बताकर लैंड बैंक में डाल दी है वह असल में ग्रामसभाओं की जमीन है। लैंड बैंक में तीन तरह की जमीन है - 1. सामाजिक जमीन यानी गोचर, खेल का मैदान, बाजार-हट, रास्ता, अखड़ा, इत्यादि, 2. धार्मिक जमीन जैसे सरना, देशावली, जाहेरथान, हड़गड़ी, मसना, इत्यादि और 3. वनभूमि एवं जंगल-झाड़ जिसपर वन अधिकार कानून 2006 के तहत आदिवासी एवं अन्य परंपरागत वन निवासियों को अधिकार मिलना है। हैरान करने वाली बात यह है कि लैंड बैक का 20,97,003.81 एकड़ जमीन में से 10,016,680.81 एकड़ जमीन वनभूमि है, जो लैंड बैंक की कुल जमीन का 48.4 प्रतिशत है (देखें सारणी 1)। झारखंड सरकार का यह कदम शुद्धरूप से आदिवासी एवं अन्य परंपरागत वन निवासियों के वन अधिकारों को नकारते हुए वनभूमि एवं जंगलों को पूंजीपतियों को सौपन की प्रक्रिया है।
सारणी 1: भूमि बैंक में वनभूमि की स्थिति
क्.. जिला    प्लाटों की              रकबा एकड़ में               वनभूमि
संख्या                                          कुल क्षेत्र            प्रतिशत में
1.रांची              10,327             1,07,677.69     78,256.44        72.68
2.खूंटी              5,863               53,387.93        12,888.14        24.14
3.लोहरदगा       3,951               14,372.30        9,742.95          67.79
4.गुमला           98,209             1,81,222.78     87,082.74        48.05
5.सिमडेगा        1,10,766          3,58,450.52     2,44,434.50     68.19
6.पूर्वी सिंहभूम  22,151             31,607.71        8,159.21          25.81
7.प. सिंहभूम    27,041             3,75,662.09     49.922.02        13.29
8.सरायकेला     5,609               24,467.66        5,008.71          20.47
9.बोकारो           2,624               21,827.03        19,823.80        90.82
10.धनबाद        6,504               30,769.46        11,648.14        37.86
11.रामगढ        574                  4,284.94          2,795.72          65.25
12.कोडरमा       278                  4,128.11          73.38               1.78
13.हजारीबाग    1,973               25,190.21        15,801.12        62.73
14.चतरा           482                  6,490.65          5,993.08          92.33
15.पलामू          --                     3,005.20          1,668.50          55.52
16.गढ़वा           31,319             33,546.72        7,536.10          22.46
17.लातेहार       12,508             79,177.25        34,407.49        43.46
18.दुमका          17,308             77,762.05        16,629.96        21.39
19.पाकुड़          15,460             69,241.36        31,436.90        45.40
20.देवघर          7,106               43,562.69        15,424.56        35.41
21.गिरिडिह      16,642             4,52,074.26     3,29,539.12     72.89
22.गोड्डा          4,956               23,417.28        5,929.15          25.32
23.जामताड़ा     9,607               36,086.36        5,803.17          16.08
24.साहेबगंज     7,889               39,591.56        16,675.58        42.12
  कुल   4,19,147          20,97,003.81   10,16,680.48   48.48

      स्रोतः भूमि बैंक, राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग, झारखंड सरकार
    
वनभूमि एवं जंगल-झाड़ को लैंड बैंक में डालना वन अधिकार कानून 2006 की धारा 4(1) एवं (5) का घोर उल्लंघन है, जो वनभूमि एवं जंगल पर आदिवासी एवं अन्य परंपरागत वन निवासियों के अधिकारों को मन्यता देता है एवं उन्हें अधिकार देने का काम पूरा होने से पहले अन्य गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाता है। सरकार का यह कदम पेसा कानून 1996 का उल्लंघन है, जो गांव के प्राकृतिक संसाधनों पर ग्रामसभा को पूर्ण अधिकार देता है। लेकिन झारखंड सरकार ने ग्रामसभाओं के अधिकारों को ताक पर रखकर पूंजीपतियों के लिए रास्ता बनाया है। इसके अलावा भूमि बैंक सुप्रीम कोर्ट के फैसले ‘ओडिसा माईनिंग कारपोरेशन बनाम वन एवं पर्यावरण मंत्रालय’ केस सं. 180 आफ 2011 का भी खुल्ला उल्लंघन है, जो गांवों के प्राकृतिक संसाधनों पर ग्रामसभाओं के अधिकारों को मान्यता देता है। इसलिए ग्रामसभाओं के सहम्मति के बगैर लैंड बैंक का निर्माण करना गैर-कानूनी है। इसलिए समय रहते झारखंड सरकार को लैंड बैंक को रद्द करना चाहिए। 

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