ग्लैडसन डुंगडुंग
संघ परिवार के द्वारा आदिवासी अस्तित्व को मटियामेट करने की साजिश में एक और तारीख जुड़ गया है और वह है 5 अगस्त 2020, जिस दिन अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया गया। राममंदिर के निर्माण हेतु आर.एस.एस. और भाजपा के नेताओं ने देश के आदिवासी बहुल इलाकों से आदिवासियों के धर्म स्थलों - सरना, देशावली, जहेरस्थान, इत्यादि से मिट्टी इक्ट्ठा करने का अभियान चलाया, जिसका मूल मकसद था आदिवासी समाज को सनातन हिन्दू धर्म में समाहित करते हुए आदिवासियों को अतिशुद्र बनाना। यह आदिवासियों के भारत देश का प्रथम निवासी होने के अस्तित्व को मटियामेट करने का बड़ा साजिश था। यह अभियान झारखंड में विवाद का विषय बन गया क्योंकि संघी आदिवासी नेताओं ने आदिवासी समुदाय से अनुमति लिये बगैर सरना स्थलों एवं जहेरथान की मिट्ठी उठा ली। इन नेताओं पर मिट्ठी चोरी करने का आरोप लगा और उनके उपर मुकदमें भी किये गये।
झारखंड के 24 प्रमुख आदिवासी संगठनों ने सरना स्थलों से मिट्टी चोरी करने के आरोप में भाजपा नेता गंगोत्री कुजूर, रामकुमार पाहन, आशा लकड़ा एवं आरती कुजूर का हुक्का-पानी बंद करने का ऐलान किया। वहीं सरना स्थल की मिट्टी चोरी करने के आरोप में तथाकथित सरना नेता मेघा उरांव के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज किया गया। हालांकि संघी आदिवासी नेताओं ने इसका विरोध भी किया। भाजपा नेत्री गंगोत्री कुजूर ने कहा कि मिट्टी दिए जाने का विरोध करने वाले नकली आदिवासी। जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट््रीय सह संयोजक डाॅ राजकिशोर हांसदा ने कहा कि जनजातीय समाज सनातन संस्कृति से अलग नहीं, जो अलग होना चाहता वह समाज का शत्रु। भाजपा नेता एवं रांची की मेयर आशा लकड़ा ने तो यहां तक कहा कि आदिवासी समाज का अस्तित्व ही है भगवान राम की वानर सेना। भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी ने भी आदिवासियों को सनातन हिन्दू धर्म का हिस्सा बताया।
इतना ही नहीं संघ परिवार से जुड़े झारखंड के रांची जिलान्तर्गत बेड़ो व लापुंग प्रखंड के कई पहानों ने खुले मैदान में प्रेस वार्ता करते समय आदिवासियों को सनातन हिन्दू धर्म का हिस्सा बताते हुए कहा ‘हमारे पूर्वज हजारों वर्षों से मंदिरों में स्थापित देवी देवताओं तथा सरना स्थल में मां सरना की पूंजा अर्चना एक साथ सरना सनातन परंपरा के अनुसार करते आए हैं। इसके अलावा खुद को सरना धर्मगुरू बताने वाले जगलाल पहन ने भी कहा कि राममंदिर निर्माण में सरना स्थल की मिट्टी लगाना गौरव की बात है। हालांकि सरना धर्मगुरू बंधन तिग्गा ने कहा कि राममंदिर निर्माण में सरना की मिट्टी का प्रयोग गलत है। उन्होंने यह भी कहा कि मेयर आशा लकड़ा और पूर्व विधायक गंगोत्री कुजूर खुद को वानर या शुद्र कह सकती है, लेकिन आदिवासियों को यह मान्य नहीं है। आदिवासी बुद्धिजीवी डाॅ. करमा उरांव और आदिवासी अगुआ प्रेमशाही मुंडा ने संघ परिवार के इस अभियान का पूरजोर विरोध किया।
यदि हम इस मसले का गंभीरता के साथ विश्लेषण करें तो यह स्पष्ट दिखाई पड़ता है कि संघ परिवार अपने अभियान में सफल हो गया। 1960 के दशक में आर.एस.एस. ने वनवासी कल्याण आश्रम के माध्यम से आदिवासी बहुल इलाके में काम शुरू करते हुए ईसाई मिशनरियों पर आदिवासियों का धर्मांतरण करने का आरोप लगाते हुए बड़े पैमाने पर आदिवासियों का हिन्दुकरण करना शुरू किया। इस दरमियान संघ के नेता निरंतर बोलते रहे कि आदिवासी हिन्दू हैं। 1990 के दशक तक संघ परिवार ने आदिवासियों के बीच अपना सशक्त कैडर तैयार कर लिया। अब वही कैडर निरंतर अभियान चलाते हुए बोलते रहते हैं कि आदिवासी वनवासी हैं, आदिवासी वानर हैं, आदिवासी हिन्दू हैं, सरना सनातन एक है, संताल सनातन एक है, इत्यादि। इसके अलावा वे ईसाई मिशनरियों पर आदिवासियांे का धर्मांतरण करने का आरोप लगाकर निरंतर राजनीतिक अभियान चलाते रहते हैं। संघ परिवार का जो भी आदिवासी कैडर जितना ज्यादा ईसाई मिशनरियों पर धर्मांतरण का आरोप लगाता है उसे उतनी ही जल्दी चुनाव लड़ने के लिए भाजपा टिकट देती है।
इसमें सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात यह है कि संघ परिवार ने आदिवासी समाज को तीन टुकड़ों में बांट दिया। संघ के नेताओं को मालूम है कि आदिवासी समाज ही एक ऐसे समाज है, जिसने अंग्रजों के सामने कभी सिर नहीं झुकाया। ऐसा इसलिए संभव हुआ क्योंकि आदिवासी समाज एकजुट था। इस समाज को तोड़े बगैर संघ परिवार के लिए आदिवासी अस्तित्व को मटियामेट करना असंभव था। संघ परिवार के नेताओं को यह भी मालूम है कि आदिवासी अस्तित्व को मटियामेट किये बगैर आर्यों को भारत का असली निवासी घोषित नहीं किया जा सकता है। ऐसी परिस्थिति में आदिवासी अस्तित्व को मटियामेट करने के लिए आदिवासियों की एकता को तोड़ना जरूरी था। इस एकता को तोड़ने के लिए धर्म ही सबसे बड़ा हथियार था। हकीकत यह है कि धर्म आफिम के रूप में काम करता है। संघ परिवार ने आदिवासियों को धर्म की आफिम खिलान शुरू कर दिया।
संघ परिवार ने आदिवासी समाज को सबसे पहले सरना और ईसाई के नाम पर दो हिस्से में बांट दिया। इसके लिए उन्होंने सरना आदिवासियों के बीच भ्रम फैलाया कि ईसाई आदिवासी ही उनके असली दुश्मन है। वे ही उनके अधिकारों को छिन रहे हैं। लेकिन इससे भी काम नहीं बना क्योंकि सरना समाज का एक हिस्स खुद को सनातन हिदू धर्म से अलग मानता है और सरना कोड की निरंतर मांग करता रहा है। इस सरना समूह ने पिछले दो दशक से इतना सशक्त अभियान चलाया कि हजारों आदिवासी परिवार जो खुद को सनातन हिन्दू मानते थे अपने घरों से महावीर झंडा हटाकर सरना झंडा लगाने लगे। फलस्वरूप, यह समूह धीरे-धीरे फैलता जा रहा था, जिसे संघ परिवार को खतरा महसूस होने लगा। फिर क्या था? संघ परिवार ने अपने आदिवासी कैडरों को एक पक्ष में खड़ा करते हुए सरना धर्म के अस्तित्व को लेकर निरंतर अभियान चलाने वाले इस समूह को ही नकली आदिवासी घोषित करना शुरू किया। अंततः आदिवासी एक बार फिर से सरना-सनातन आदिवासी और सरना आदिवासी में बांट गये। संघ परिवार अपना निजी स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए आदिवासी समाज को कई टुकड़ों में बांट दिया फिर भी तथाकथित सरना नेता इस बात को समझने के लिए तैयार नहीं हैं।
पिछले कुछ दशकों में तथाकथित सरना नेताओं ने अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए आर.एस.एस. और भाजपा के साथ मिलकर आदिवासी समाज के अस्तित्व को मटियामेट करने के प्रयास में सबसे ज्यादा योगदान दिया है। यह कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि संघ से जुड़े इन तथाकथित सरना नेताओं को ‘‘सरना धर्म’’ से कुछ लेना-देना नहीं है बल्कि इन्होंने अपने राजनीतिक स्वार्थों को सिद्ध करने के लिए ‘‘सरना धर्म’’ का उपयोग किया है। ऐसा अक्सर देखा गया है कि जब भी ‘‘सरना’’ और ‘‘हिन्दू’’ धर्मों के बीच टकराहट की स्थिति पैदा होती है, ये लोग ‘‘सरना-सनातन’’ एक है वाला संघ परिवार का राग अलापने लगते हैं और अंततः सनातन हिन्दू धर्म के पक्षधर बन जाते हैं। हकीकत यह है कि इन्हें ‘‘सरना धर्म’’ से कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि इनका हिन्दू धर्म में धर्मांतरण हो चुका है। कड़वी सच्चाई यह है कि ‘‘सरना धर्म’’ के अस्तित्व को मटियामेट करने में इन तथाकथित सरना नेताओं की सबसे बड़ी भूमिका है। क्या इन तथाकथित सरना नेताओं को सरना समाज कभी माफ करेगा?
सरना स्थलों के मिट्टी को राममंदिर निर्माण हेतु भेजना कोई मामूली घटना नहीं है बल्कि यह ‘‘समुदाय आधारित’’ समता मूलक आदिवासी समाज को भेदभाव से सराबोर ‘‘वर्ण एवं जाति’’ आधारित सनातन हिन्दू समाज में तब्दील करने की सबसे बड़ी कोशिश है। यह आदिवासी समाज के अस्तित्व को मटियामेट करने का मसला है। ऐसी परिस्थिति मेें आदिवासी समाज के अस्तित्व को बचाने के लिए आदिवासी बुद्विजीवियों को इसपर गंभीरता से चिंतन-मंथन करते हुए सशक्त कदम उठाने की जरूरत है। संघ परिवार अपने उत्पति काल से ही आदिवासी अस्तित्व को मटियामेट करने में लगा हुआ है। इसलिए आदिवासी समाज को सनातन हिन्दू समाज का हिस्सा बताता है। लेकिन असल में न संघ परिवार आदिवासी समाज को परिभाषित कर सकता है और न ही आर.एस.एस. एवं भाजपा से जुड़े हुए कठपुतली आदिवासी नेता। आदिवासी समाज को हमारे पूर्वजों ने परिभाषित कर दिया है। हम आदिवासी भारत के प्रथम निवासी हैं, और इस सच्चाई को कोई भी ताकत झूठला नहीं सकता है। इसलिए आदिवासी अस्तित्व पर हमला बंद होनी चाहिए। ‘‘सनातन हिन्दू धर्म’’ की उत्पति से हजारों साल पहले से ‘‘सरना धर्म’’ का अस्तित्व रहा है। इसलिए इसे ‘‘सनातन हिन्दू धर्म’’ में समाहित करने की साजिश पर विराम लगाते हुए सरना धर्मावलंबी आदिवासियों को अलग धर्म कोड दिया जाना चाहिए।
काफी अच्छा लेख लिखा है आपने ! मैं काफी समय से आपके लेख पढ़ता रहा हूं और मौजूदा आदिवासी समाज की बदहाल स्थिति की वजहों को भी समझने लगा हूं !
जवाब देंहटाएंमुझे जानने की यह बड़ी इच्छा है कि ऐसी और कौन-कौन सी सरकारी योजनाएं थी जो आदिवासी कल्याण के नाम भयंकर धांधली या भ्रष्टाचार किया हो मगर हमारे ही आदिवासी ना चाहते हुए भी सरकारी फरमान मानकर उसे अपने यहाँ इंप्लांट कर अपने ही अधिकारों का दोहन कर रही है !
कई दफा सरकारी रिकॉर्ड में मौजूद इन भ्रष्टाचार की फाईल पढ़ता हूं तो सोचता हूं कि क्या सिर्फ इन्हीं चीजों के लिए हमारी पीढ़ी काम करेगी !?
जवाब देंहटाएंसाफ दिखता है कि दिकू कभी दूध का धुला हो ही नहीं सकता!
हर वो चीज जिसे हम जरूरत कहतें हैं उन सभी पर इनका कब्जा हैं और हमारा जल-जंगल-जमीन का आंदोलन उनके लिए मजाक !
कहिए ये पढ़े-लिखे sophisticated नौजवान मुझे पैसे,धर्म और High Education की शिक्षा बाँटते हैं ! मुझे उनकी तरक्की पसंद सोच से कोई चिढ़ नहीं होती लेकिन इस अतिमहत्वकांक्षा की क्या कीमत होगी इसका अंदाजा उनको नहीं मालूम ! हर चीज महज फैक्ट्री से तो नहीं आती ना !
ग्लैडसन दादा ! काफी दिन हो गये आपका नया ब्लॉग अब तक नहीं देखने मिल रहा ! फिलहाल कोरोना का समय है उस पर कुछ लिख देते !!
आर्टिकल काफी बढ़िया हैं ,हमें डिजिटल साहित्य की और ध्यान देकर आगे कदम बढ़ाना चाहिय और एसी कमुनिटी तयार करनी चाहिए |बाकि दुसरे समाज के लोग देखे तो कितने अग्रेसर है ,https://bhartiyadiwasi.blogspot.com/2021/10/history-of-kalibai.html
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