गुरुवार, 27 नवंबर 2014

मैं भी देश का नेता होता

ग्लैडसन डुंगडुंग














मैं भी देश का नेता होता
ताकत अगर होती मुझमें
खरीदने की फ्रोंटपेज अखबारों का
सारे टीवी चैनलों में
न्यूज, व्यूज और सीरियल मैं ही होता
और मीडिया का अदृश्य एडिटर भी।

सने होते हाथ मेरे
हजारों निर्दोषों के खून से लतपथ
कातिल होने की कलंक होती माथे पर मेरी
कहलाता निर्दोष फिर भी
लेकर अंधा कानून का सहारा
हरकतो से अपने बाज न आता
दुनियां को पाठ मानवता की मैं पढ़ाता ।

जनता से करता वादा खिलाफी बार-बार
महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी बढ़ाता हर बार
खाने के लाले पड़ते उनके
पर होती जय-जयकार मेरी
सबका मैं होता मसीहा
पूजा होती मेरी दिन और रात।

जूझती खून की कमी से मां-बहनें
बच्चों के पेट ब्लाडर जैसे होते
शिक्षा का हाल बेहाल होता
सड़कें गडढ़ों से भरी होती
फिर भी कहलाता विकास पुरूष मैं
देश को दिखाता माॅडल विकास का।

संघर्ष में आजादी का हिस्सा न कभी होता मेरा
लड़ाता आपस में सबको
हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर- मस्जिद के नाम पर
देश में कराकर धर्मयुद्ध
होता मैं सबसे बड़ा राष्ट्रभक्त ।

करके वादा अंशू पोछने का
रूलाता मैं सबको
खाना-पानी क्या
पेट भरता दिन-रात
भाषण से मैं उनका

सफाई कर्मचारी मरते भूखे
पसीना बहा-बहाकर भी
लगाता झाड़ू मंगवाकर कूड़ा मैं
देता भाषण स्वच्छ भारत का
और फ्रोंटपेज में होती तस्वीर मेरी

गांधी-नेहरू को देकर भी गाली
खूब बटोरता मैं ताली
चढ़ाता लोगों को झाड़ में चने के
मुस्कुरा-मुस्कुरा कर देखता गिरते उनको
दिन में दिखाता सपने बड़े-बड़े
देर भी न करता तोड़ने में इन्हें खड़े-खड़े।

पूँजीपतियों की मौज होती
रखकर ताक पर
संविधान, कानून और नीति
सब देता मैं उनको
जंगल, जमीन, पहाड़, नदी और खनिज
करता दौरा विदेशों का मैं
बटोरकर लाता धन
अदानी, अंबानी और टाटा के वास्ते।

चलते पीछे मेरे उद्योगपति
आंख मिचैली खेलता मैं
जीवन-संगनियों के साथ उनके
फेसबुक पर होती रोज सेल्फी मेरी
लाईक और काॅमेंट करते-करते
होती जनता मंतरमुग्ध
चारो तरफ होती जयघोष मेरी
मैं भी देश का नेता होता। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें