सोमवार, 10 नवंबर 2014

लालगलियारे के सन्नाटे में

ग्लैडसन डुंगडुंग












लालगलियारे के सन्नाटे में
घुन की तरह पीस रहा आदमी
भूत का यहां पता नहीं
दुःख, दर्द और पीड़ा से है भरा वर्तमान,
उम्मीद की कोई किरण नहीं यहां
भविष्य में अंधेरा छाया है।

आतंक है लाल और खाकी का 
बच न पाया कोई भी अबतक यहां
हत्या, बलात्कार और यातना
रोजमर्रा की मर्म है
निर्दोष तड़प रहे जेल में
प्रफुल्लित हैं दोषी खाकी संग यहां।

विद्यालय में बच्चे नहीं
कोबरा का तांडव है
गुरूजी पड़े हैं जेल में
माओवादियों का मोहरा बनकर
बारह खाड़ी जानते नहीं बच्चे
एस.एल.आर. और ए.के. 47 के बने हैं ज्ञाता।

पड़े हैं बीमार स्वास्थ्य केन्द्र भी
मरीजों का ख्याल रहा नहीं किसी को
डाॅक्टर और नर्सों की मौज है
बैठे बिठाए मिल रहा वेतन उनको
बेच रहे सरकारी दवा भी 
माओवादियों के नाम पर।

जंगल के पहरूए रहे सदियों से जो
उसके ही दुश्मन बनाये गये हैं आज वो
तड़प रहे काल-कोठरी में
पेड़ काटने के इल्जाम में।

माओवादी, पूंजीपति और ठेकेदारों का है
बेजोड़ गांठजोड़, जंगल के अंदर
खजाना विकास का 
निगल रहे वो अनाकोंडा की तरह। 

ब्लाडर जैसे पेट लिए
जंगल के बीच सन्नाटे में
कांच की गोली खेलते बच्चे
राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बन गए हैं खतरे।

चल रहा युद्ध लालगलियारे में
सरकार और लोहा-लक्कड़ वालों के बीच
शांति और न्याय के नाम पर
जंगल भी है हैरान
एक-दूसरे का देखकर कत्लेआम।

पूंजीपतियों की मौज है
लूट रहे प्रकृतिक सम्पदा
विकास और आर्थिक तरक्की के नाम पर  
और दम तोड़ रहा 
देश का अंतिम आदमी
लालगलियारे के संन्नाटे में
तड़प-तड़प कर। 

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