शनिवार, 15 नवंबर 2014

उलगुलान का मशाल

- ग्लैडसन डुंगडुंग - 













उलगुलान का मशाल 
तूफानी हवा के झोंके से
बुझ गया क्या?
बिरसा का आह्वान
कंक्रीट के जंगल में
समा गया क्या?
पुरखों का सपना 
टूटकर शीशे की तरह
चकनाचूर हो गया क्या?

गये कहां वंशज बिरसा के?
चले थे जो लेकर मशाल उलगुलान की
सो गये हैं क्या योद्धा उलगुलान के?
अंग्रेजों को नाको चने चबवाये थे जिन्होंने 
हैं कहां सिपाही उलगुलान के?
खदेड़ा था जिन्होंने असूर दिशुम से
जिंदल, मित्तल और टाटा को।

शिकार की तलाश में फिर से 
मंडराने लगे हैं वो खुले आसमान के नीचे
बाज जैसे झपटने को हैं बेचैन
दबोच लेना चाहते एक झटके में शिकार को
निगल जाना चाहते प्रकृतिक संपदा
भयावह अनाकोंडा की तरह।

क्या है हमारा? कौन है हमारा?
सबकुछ बड़ा ही धूमिल है
पहरेदार भी दगा दे गये
पूर्वजों का घेरा तोड़कर 
पुटूस को भी नहीं छोड़ा
जंगली झाड़ी बताकर
लूट रहे दिखाकर सब्जबाग
समृद्ध होने का
शिकारियों की तरह। 

अब तो जागो बिरसा के वंशज
आ रही सुनामी पार से सात समुद्र
तोड़ा गया है बांध 
लुढ़काया गया है पत्थर
झाड़ियां भी सब कट चुकी हैं
हो चुका है सूर्य अस्त
चीर दो घने बादलों को अब
उठा लोे मशाल उलगुलान का
करेगा वही बेड़ा पार तुम्हारा 

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