रविवार, 27 अक्तूबर 2019

ईसाई मिशनरी एवं ईसाई धर्मावलंबी आदिवासियों पर संगठित हमला

ग्लैडसन डुंगडुंग
भारतीय जनता पार्टी, संघ परिवार और इनके संहयोगी संगठन चुनाव के समय राजनीतिक लाभ लेने के लिए एक रणनीति के तहत ईसाई मिशनरी एवं ईसाई आदिवासी धर्मावलंबियों पर संगठित हमला करते हैं। ईसाई मिशनरियों के द्वारा झारखंड में कानूनी रूप से हासिल की गई जमीन को लेकर जांच एवं कानूनी कार्रवाई के नाम पर झारखंड के राज्यपाल, मुख्यमंत्री, नौकरशाह, भाजपा एवं इनके सहायोगी संगठनों के द्वारा किया जा रहा हमला इसका सटीक उदाहरण है। 

यह गौरतलब है कि जो राजनीतिक पार्टी छोटानागपुर, कोल्हान और संताल परगना के विधानसभा सीटों पर जीत हासिल करेगा, झारखंड का सत्ता उसी को मिलेगा। इसी को ध्यान में रखते हुए भाजपा ईसाई मिशनरियों और ईसाई धर्मावलंबी आदिवासियों पर हमलावर है क्यांकि इन क्षेत्रों में कुछ सीटों को छोड़कर सरना एवं हिन्दू आदिवासियों का बोल-बाला है। इसलिए इन आदिवासियों का भावनात्मक शोषण कर भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव जीतना चाहती है।

2017 में भाजपा सरकार के द्वारा धर्मांतरण के खिलाफ राज्य में कानून लागू करने के बावजूद सरना कोड पर सरकार की चुप्पी और सीएनटी एवं एसपीटी कानूनों में किये गये संशोधन को आदिवासी नहीं भूले हैं। जमीन आदिवासियों का सबसे बड़ा मुद्दा है इसलिए आगामी विधानसभा चुनाव में सीएनटी एवं एसपीटी संशोधन का मुद्दा प्रभावी रहेगा। इसी को ध्यान में रखते हुए एक रणनीति के तहत सरना एवं हिन्दू आदिवासियों को गुमराह करते हुए उन्हें खुश करने हेतु संघ परिवार, भाजपा एवं इनके सहयोगी संगठनों ने एक बार फिर से ईसाई मिशनरी एवं ईसाई धर्मावलंबियों पर हमला बोलना शुरू किया है। 

इसके लिए सबसे पहले भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा, झारखंड के द्वारा विधायक रामकुमार पाहन की अगुआई में 23 जून 2019 को झारखंड के राज्यपाल को एक स्मार-पत्र देते हुए ईसाई मिशनरियों पर आरोप लगाया गया कि वे राज्य में बड़े पैमाने पर जनजातियों की भूमि एवं गैर-मजरूआ भूमि दोनों पर अवैध दखल कब्जा एवं बन्दोबस्त कर राष्ट्र विरोधी गतिविधि चला रहे हैं। इसलिए इसकी जांच एवं इनके खिलाफ कार्रवाई की जाये। अगले दिन राज्यपाल को स्मार-पत्र सौपने वाली तस्वीर के साथ अखबारों में बड़ी खबर छपी, जिसे भाजपा के हित में राजनीतिक महौल बनना शुरू हो गया। 

इसी बीच उक्त स्मार-पत्र पर कार्रवाई करते हुए राज्यपाल के प्रधान सचिव ने 5 जुलाई 2019 को झारखंड के मुख्य सचिव को ईसाई मिशनरियों के द्वारा आदिवासियों की जमीन हड़पने के मसले पर जांच एवं कानूनी कार्रवाई करने का अनुरोध करते हुए पत्र लिखा। राजभवन के द्वारा ऐसी त्वरित कार्रवाई नहीं देखी गई है। संविधान के पांचवीं अनुसूची में किये गये प्रावधान के अनुसार राज्यपाल को आदिवासियों के विकास एवं काल्याण से संबंधित प्रतिवेदन राष्ट्रपति को प्रतिवर्ष भेजना है लेकिन राजभवन इस कार्य में शिथिल है। झारखंड के जनसंगठन, आदिवासी संगठन एवं जनांदोलनों ने राज्यपाल को सैकड़ों स्मार-पत्र सौपें लेकिन उनपर कोई कार्रवाई नहीं हुई। तत्कालीन राज्यपाल को मैंने ‘‘लैंड बैंक’’ और ‘‘वाईल्ड लाईफ कारिडोर परियोजना’’ रद्द करने का अनुरोध करते हुए स्मार-पत्र सौंपा लेकिन अबतक राजभवन से कोई जवाब नहीं आया। लेकिन भाजपा नेताओं के स्मार-पत्र पर त्वरित कार्रवाई संदेह में डालता है।  

संघ परिवार और भाजपा ने पूरा सरकारी महकमा को ही अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया हैं। ईसाई मिशनरियों की जमीन जांच संबंधी राजभवन से पत्र मिलते ही झारखंड सरकार के संयुक्त सचिव कमलेश्वर प्रसाद सिंह ने 12 जुलाई 2019 को सभी जिले के उपायुक्तों को उक्त मामले पर जांच एवं कानूनी कार्रवाई करने हेतु पत्र जारी किया। 24 जुलाई 2019 को उन्होंने फिर से पत्र लिखकर उपायुक्तों को याद दिलवाया कि उन्होंने क्या कार्रवाई की उसके बारे में जवाब दें। इसी बीच जिलें के उपायुक्तों ने भी अपने अधीनस्त पदाधिकारियों को पत्र जारी कर कार्रवाई करने का आदेश दिया। सरकारी दफ्तरों से पत्र जारी होता रहा और मीडिया में खबरें छपती रही कि भाजपा सरकार ईसाई मिशनरियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर रही है। इस संदेश को संघ परिवार, भाजपा और उनके सहयोगी संगठन सरना एवं हिन्दू आदिवासियों के बीच जमकर संचार करते रहे। 

लेकिन इतना में बात नहीं बना। भाजपा के अनुसूचित जनजाति मोर्चा ने 19 अगस्त 2019 को एक साथ सभी जिलों के उपायुक्तों के पास प्रदर्शन करते हुए उन्हें स्मार-पत्र सौप कर ईसाई मिशनरियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की। यह मसला फिर से अखबारों में छाया रहा। यहां सवाल उठता है कि जब राजभवन, राज्य सरकार और जिले के उपायुक्त ईसाई मिशनरियों की जमीन के मसले पर जांच और काईवाई में जुटे हुए है तो फिर से प्रदर्शन करने की क्या जरूरत पड़ी? जाहिर सी बात है कि राज्य में भाजपा के पक्ष में राजनीतिक महौल बनाने के लिए ऐसा किया गया।

इसके अलावा 15 सितंबर 2019 को संघ परिवार का सहमना संगठन ‘‘जनजाति सुरक्षा मंच, झारखंड’’ ने झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास से मिलकर ईसाई धर्मावलंबी आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति के अधिकार से बेदखल करने की मांग करते हुए एक स्मार-पत्र सौंपा। फिर 23 अक्टूबर 2019 को मंच ने दुमका में सम्मेलन का आयोजन किया और अंत में एक स्मार-पत्र उपायुक्त को सौपते हुए मांग किया कि धर्मांतरित ईसाई आदिवासियों को एसटी के अधिकार से वंचित किया जाये।  

भाजपा, संघ परिवार एवं इनके सहयोगी संगठनों के द्वारा ऐसा करने के पीछे ऐहितासिक कारण हैं। इसका मूल कारण यह है कि अलग-अलग धर्म मानने वाले आदिवासी पहले कांग्रेस के वोट बैंक हुआ करते थे। लेकिन 1950 एवं 60 के दशक में झारखंड पार्टी की सफलता को देखकर कांग्रेस घबरा गई। कांग्रेस ने इसके लिए दो रास्ता अपनाया - झारखंड पार्टी को कांग्रेस में विलय करना और आदिवासियों को धर्म के आधार पर बांटना। 

ईसाई और गैर-ईसाई आदिवासी का विवाद सबसे पहले जेना उरांव ने उठाया, जिसे कांगेरस नेता ठेबले उरांव के द्वारा कांग्रेस आगे बढ़ाती रही। 1970 के दशक में कांग्रेस नेता कार्तिक उरांव ने इसे सरना बनाम ईसाई बना दिया। कार्तिक उरांव ने ईसाई धर्मावलंबी आदिवासियों को एसटी का आरक्षण से वंचित करने का मांग की।  इसका परिणाम यह हुआ कि सरना आदिवासी फिर से कांग्रेस के वोट बैंक बन गये। 

संघ परिवार ने 1952 में ही आदिवासी इलाकों में अपना पैठ जमाने के लिए जशपुर में ‘‘वनवासी कल्याण आश्रम’’ की स्थापना की थी, जिसके पीछे भी कांग्रेस का हाथ था। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रवि चन्द्र शुक्ला आदिवासी इलाकों से मिशनरियों को खत्म करना चाहते थे क्योंकि झारखंड आंदोलनकारियों ने उन्हें काला झंडा दिखाया था। उन्हें लगा कि यह काम ईसाई मिशनरियों के इशारे पर ही किया गया है। 

इसका परिणाम यह हुआ कि ‘‘वनवासी कल्याण आश्रम’’ के द्वारा संघ परिवार आदिवासी इलाकों में घुस गया। जब 1980 में भाजपा का जन्म हुआ तबतक संघ परिवार ने आदिवासी इलाकों में अपना पैठ बना लिया था। संघ परिवार और भाजपा नेताओं ने कांग्रेस के द्वारा आदिवासियों को धर्म के आधार पर बांटे गये मसले को गहराई से समझ और उसे एक हथियार के रूप में उपयोग करना शुरू किया। इन्होंने धर्मांतरण और ईसाई धर्मावलंबी आदिवासियों को आरक्षण से वंचित करने को अपना प्रमुख मुद्दा बनाया। 

इन्होंने सरना एवं हिन्दू धर्मालंबी आदिवासियों के दिमाग में यह बात डाल दिया कि ईसाई मिशनरी उनके दुश्मन है, जो उनको उनकी संस्कृति, परंपरा एवं रूढ़ियों से बेदखल कर धर्मांतरण कराते हैं तथा ईसाई धर्म में धर्मांतरित आदिवासी उनके आरक्षण के अधिकार को छीन रहे हैं। वे ईसाई धर्म मानते हैं इसलिए ईसाई मिशनरियों के शिक्षण संस्थानों में उन्हें पढ़ने का अवसर मिलता है और एसटी आरक्षण का लाभ लेकर नौकरी हासिल कर लेते हैं। इस तरह से वे दोहरा लाभ लेते हुए समृद्ध हो रहे हैं। ईसाई धर्मावलंबी आदिवासियों के पास नौकरी है इसलिए वे अच्छा घर बनाकर रहते हैं, उनके पास गाड़ी और पैसा भी है। इसलिए वे शान से जीते हैं। 

संघी नेताओं ने उन्हें समझाया कि यदि ईसाई धर्मावलंबी आदिवासियों को एसटी का आरक्षण मिलना बंद हो जायेगा तो वे खत्म हो जायेंगे और सरना आदिवासियों को आरक्षण का पूरा लाभ मिलेगा। संघ परिवार और भाजपा ने ईसाई मिशनरी एवं ईसाई धर्मावलंबी आदिवासियों को सरना एवं हिन्दू आदिवासियों के बीच विलेन के रूप में स्थापित कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने कांग्रेस पार्टी को भी ईसाई आदिवासियों का हितैशी तथा सरना एवं हिन्दू आदिवासियों का विरोधी के रूप में स्थापित कर दिया। फलस्वरूप, अधिकांश सरना एवं हिन्दू आदिवासी कांग्रेस पार्टी को छोड़कर भाजपा का वोट बैंक बन गये। 

झारखंड राज्य के गठन के बाद संघ परिवार और भाजपा के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा सबसे बड़ा राजनीतिक चुनौती बना क्योंकि इस पार्टी के पीछे झारखंड आंदोलन का एक बड़ा विरासत था। भाजपा ने जेएमएम को अपने साथ खड़ा करने की कोशिश की और साथ में सरकार भी बनाया। लेकिन जब साथ नहीं चल सके तब संघ परिवार और भाजपा ने जेएमएम को भ्रष्ट, वंशवाद और ईसाई समुदाय का मुखौटा के रूप में प्रस्तुत करना शुरू किया। छोटानागपुर को कब्जा करने के बाद भाजपा ने संताल परगना और कोल्हान का रूख किया। विगत कुछ वर्षों से पार्टी अपना पूरा ताकत इन्हीं क्षेत्रों में लगा रहा है। 

संघ परिवार और भाजपा ने एक रणनीति के तहत सरना एवं हिन्दू धर्मावलंबी आदिवासियों को अपना मुखौटा बनाया, जिसके लिए धर्मांतरण, ईसाई धर्मावलंबियों के आरक्षण खारिज करने की मांग और ईसाई मिशनरियों के खिलाफ आग उगलने वाले व्यक्तियों को चुना। भाजपा के अंदर अनुसूचित जनजाति मोर्चा का भी गठन किया गया, जिसके नेता ईसाई मिशनरियों के खलाफ आग उगलते हैं। इसके बाद अनुसूचित जनजाति मोर्चा और सरना जागरण मंच जैसे कई संगठनों का गठन कर अपने कैडरों को के द्वारा ईसाई समुदाय के खिलाफ आग उगलवाते हैं। 

इसके अलावा सरना आदिवासियों की सामाजिक एवं धार्मिक संगठन जैसे केन्द्रीय सरना समिति, आदिवासी हो महासभा, सपाहोड़, इत्यादि को अपना सहयोगी संगठन के रूप में रखा। ये संगठन संघ परिवार के एजंडा को आगे बढ़ाने का काम करते हैं और भाजपा को वोट दिलाते हैं। इन संगठनों को संघ परिवार एवं भाजपा के कैडर ही चलाते हैं। इन्हें संघ परिवार और भाजपा का बी टीम कहा जा सकता है। ऐसा देखा गया है कि जो आदिवासी ईसाई मिशनरियों के खिलाफ जितना ज्यादा जहर उगलता है उसे उतना ही जल्दी भाजपा चुनाव लड़ने के लिए टिकट देती है। इसलिए संघ परिवार, भाजपा और इनके सहयोगी संगठनों में कार्यरत आदिवासियों के बीच मिशनरियों के खिलाफ जहर उगलने का प्रतिस्पर्धा है।  

झारखंड बनने के बाद से लगभग एक दशक तक संघ परिवार, भाजपा और इनके सहयोगी संगठनों ने मिलकर धर्मांतरण, नेम्हा बाईबल, लालपाड़ साड़ी और ईसाई धर्मावलंबियों को एसटी के आरक्षण से वंचित करने जैसे मुद्दों पर हंगामा खड़ा करके रखा था। विगत कुछ वर्षों से इन्होंने ईसाई संस्थानों को मिलने वाले विदेशी फंड का दुरूपयोग, सिस्टरां के द्वारा बच्चा बेचने एवं आदिवासियों की जमीन को कब्जा करके चर्च एवं अन्य संस्थान बनाने का झूठा आरोप लगाकर ईसाई मिशनरियों को बदनाम करने हेतु अभियान चलाया है। इस अभियान को न सिर्फ सरकार का सहयोग है बल्कि राजभवन भी इसमें शामिल है क्योंकि इसके पीछे संघ परिवार खड़ा है। ईसाई मिशनरी एवं ईसाई धर्मावलंबी आदिवासियों पर संगठित हमला सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है। 

3 टिप्‍पणियां:

  1. गत वर्षों से इस मुद्दे पर काफी गर्मागर्म बहसें आज भी जारी है, पर पता नहीं शायद उनको यह नहीं दिखता कि इस धर्मांतरण का पूरा बखेड़ा तो इन्हीं ब्राह्मणवादियों और आर्य समाजियों के साजिशों का नतीजा है !

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